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(अथ पुष्पगन्धिका) -
(अथ आसीनम्) -
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भ्रूनेत्रपाणिचरणविलासाभिनयादिकम् योज्यमासीनया पाठ्यमासीनं तदुहाहृतम् ।। २४५ ।।
(३) आसीन - बैठी हुई नायिका द्वारा भौंह, नेत्र, हाथ, पैर के विलास द्वारा किया गया वाक्य अभिनय आसीन कहलाता है ।। २४५ ॥
तृतीयो विलासः
नानाविधेन वाद्येन नानाताललयान्वितम् ।
लास्यं प्रयुज्यते यत्र सा ज्ञेया पुष्पगन्धिका ।। २४६ ।।
(४) पुष्पगन्धिका - अनेक प्रकार के वाद्ययन्त्रों के साथ अनेक ताल और लय से समन्वित जो लास्य होता है, वह पुष्पगन्धिका कहलाता है॥ २४६ ॥
(अथ प्रच्छेदकम्) -
(अथ त्रिमूढकम्) -
अन्यासङ्गमशङ्किन्या नायकस्यातिरोषया ।
प्रेमच्छेदप्रकटनं लास्यं प्रच्छेदकं विदुः ।। २४७।।
(५) प्रच्छेदक- (नायक के) दूसरी (नायिका) के साथ समागम की शङ्का करने वाली नायिका के द्वारा अत्यधिक रोष से प्रेम के विच्छेद (टूटने) को प्रकट किये जाने वाला लास्य प्रच्छेदक कहलाता है ।। २४७॥
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अनिष्ठुरश्लक्ष्णपदं समवृत्तैरलङ्कृतम् ।
नाट्यं पुरुषभावाढ्यं त्रिमूढकमुदाहृतम् ।। २४८।।
(६) त्रिमूढक- पुरुष भाव से सम्पन्न और समवृतों से सुशोभित तथा कोमल श्लक्ष्ण पद वाले नाट्य को त्रिमूढक कहा जाता है ।। २४८ ॥
(अथ सैन्धवम्) - देशभाषाविशेषेण
(द्विमूढकम्) -
चलद्बलयशृङ्खलम् । लास्यं प्रयुज्यते यत्र तत् सैन्धवमिति स्मृतम् ।। २४९ ।।
(७) सैन्यव - स्थान और भाषा की विशेषता के साथ चञ्चल कङ्गन और करधनी वाला लास्य सैन्धव कहलाता है ।। २४९ ॥
चारीभिर्ललिताभिश्च चित्रार्थाभिनयान्वितम् ।
स्पष्टभावरसोपेतं लास्यं यत्तद् द्विमूढकम् ।। २५० ।।