Book Title: Rasarnavsudhakar
Author(s): Jamuna Pathak
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series

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Page 499
________________ रसार्णवसुधाकरः ।। २८८।। कैशिकीवृत्तिविरलं भारत्यारभटीस्फुटम् । नायकैरुद्धतैर्देवयक्षराक्षसपन्नगैः गन्धर्वभूतवेतालसिद्धविद्याधरादिभिः समन्वितं षोडशभिर्न्यायमार्गणनायकम् ।। २८९ ।। चतुर्भिरङ्गैरन्वीतं निर्विमर्शकसन्धिभिः । 1 ।। २९० ।। निर्घातोल्कोपरागादिघोरक्रूराजिसम्भ्रमम् सप्रवेशक विष्कम्भचूलिकं हि डिमं विदुः । अस्योदाहरणं ज्ञेयं वीरभद्रविजृम्भणम् ।। २९१ ।। (९) डिम- जो (इतिहास) प्रसिद्ध कथावस्तु वाला, शृङ्गार और हास्य रस से रहित, दीप्त रौद्र (रस) से युक्त, कैशिकी वृत्ति से रहित तथा भारती और आरभटी वृत्ति से युक्त, देव, यक्ष, राक्षस, पन्नग ( वासुकी इत्यादि) उद्धत नायक से युक्त, गन्धर्व, भूत, वैताल, सिद्ध, विद्याधर आदि सोलह न्याय मार्ग वाले नायकों से समन्वित होता है। चार अङ्कों से युक्त, विमर्श सन्धि से रहित होता है । विनाश, उल्का, सूर्यग्रहण या (चन्द्रग्रहण इत्यादि) क्रूरता, संक्षोम, युद्ध, आतङ्क से युक्त होता है तथा प्रवेशक, विष्कम्भक और चूलिका से सम्पन्न होता है ऐसे रूपक को डिम समझना चाहिए वीरभद्रविजृम्भण को इसका उदाहरण जानना चाहिए।। २८७उ.-२९१॥ [ ४४८ ] अथेहामृग: यत्रेतिवृत्तं मिश्रं स्यात् सविष्कम्भप्रवेशकम् । चत्वारोऽङ्का निर्विमर्शगर्भाः स्युः सन्धयस्त्रयः ।। २९२ ।। धीरोद्धतश्च प्रख्यातो दिव्यो मर्त्योऽथ नायकः । दिव्यस्त्रियमनिच्छन्तीं कन्यां वा हर्तुमुद्यतः ।। २९३ । । स्त्रीनिमित्ताजिसंरम्भः पञ्चषाः प्रतिनायकाः । - रसा निर्भयबीभत्सा वृत्तयः कैशकीं विना ।। २९४।। स्वल्पस्तस्याः प्रवेशो वा सोऽयमीहामृगो मतः । व्याजान्निवारयेदत्र सङ्ग्रामं भीषणक्रमम् ।। २९५ ।। तस्योदाहरणं ज्ञेयं प्राज्ञैर्मायाकुरङ्गिका । (१०) ईहामृग - ईहामृग की कथावस्तु ( प्रख्यात और कवि - कल्पना से) मिश्रित होती है। इसमें चार अङ्क तथा विमर्श और गर्भ सन्धि से अन्य (मुख, प्रतिमुख और निर्वहण) तीन सन्धियाँ होती हैं। इसमें धीरोद्धत प्रख्यात देवता अथवा मनुष्य नायक होता है इसमें दिव्य स्त्री या (प्रेम को ) न चाहती हुई भी कन्या के अपहरण के लिए प्रतिनायक उद्यत रहता है। स्त्री के लिए युद्ध होता है, पाँच-छः प्रतिनायक होते हैं। वीभत्स से रहित अन्य रस

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