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तृतीयो विलासः
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तथा कैशिकी से अन्य वृत्तियाँ होती हैं। इसमें किसी बहाने से भीषण युद्ध का निवारण कर देना चाहिए। मायाकुरङ्गिका को इस (ईहामृग) का उदाहरण समझना चाहिए।।२९२-२९६पू.।।
इत्थं श्रीशिङ्गभूपेन,सर्वलक्षणशालिना ।। २९६।।
सर्वलक्षणसम्पूर्ण लक्षितो रूपकक्रमः ।
इस प्रकार सभी लक्षणों के ज्ञाता शिङ्गभूपाल ने रूपकों के क्रम को सभी लक्षणों से लक्षित किया है।।२९६उ.-२९७पू.॥
नाटकपरिभाषा
अथ रूपकनिर्माणपरिज्ञानोपयोगिनी ।।२९७।। श्रीशिङ्गधरणीशेन परिभाषा निरूप्यते । परिभाषात्र मर्यादा पूर्वाचार्योपकल्पिता ।।२९८।।
सा हि नौरतिगम्भीरं विविक्षोर्नाट्यसागरम् ।।
नाटक विषयक परिभाषा- अब शिङ्गभूपाल रूपकों के लिए निर्माण के उपयोगी परिभाषा का निरूपण कर रहे हैं। आचार्यों द्वारा उपकल्पित मर्यादा परिभाषा कहलाती है। वह (परिभाषा) अत्यधिक गम्भीर नाट्यसागर को निरूपित करने की नौका है।।२९७उ.-२९९पू.।।
(परिभाषाभेदाः)
एषा च भाषानिर्देशनामभिस्त्रिविधा मता ।। २९९।।
परिभाषा के प्रकार- (१) भाषा (२) निर्देश और (३) नाम के भेद से यह (परिभाषा) तीन प्रकार में कही गयी है।।२९९उ.।।
(तत्रभाषाभेदौ-)
तत्र भाषा द्विधा भाषा विभाषा चेति भेदतः ।
(१) भाषा के भेद- (अ) भाषा और (आ) विभाषा भेद से भाषा दो प्रकार की होती है।।३००पू.॥
(तत्र विभाषाभेदाः)
चतुर्दशविभाषाः स्युः प्राच्याद्या वाक्यवृत्तयः ।।३००।। आसां संस्कारराहित्याद् विनियोगो न कथ्यते ।
उत्तरादिषु तद्देशव्यवहारात् प्रतीयताम् ।।३०१।।
(१) विभाषा- चौदह विभाषाएँ होती हैं। व्याकरण से रहित होने के कारण इनका विनियोग नहीं कहा जा रहा है। उत्तर इत्यादि में उस स्थान पर व्यवहरित होने के कारण समझ लेना चाहिए।।३००उ.-३०१॥