________________
[ ४३२]
रसार्णवसुधाकरः
है, वह भाण कहलाता है। एक पात्र द्वारा अभिनीत इस (भाण) में आकाशभाषित का प्रयोग करना चाहिए।।२३७उ.-२३९।।
(आकाशभाषितम् )
अन्येनानुक्तमप्यन्यो वचः श्रुत्वेव यद् वदेत् ।
इति किं भणसीत्येतद् भवेदाकाशभाषितम् ।। २४०।। आकाशभाषित
दूसरे के द्वारा अनुक्त (बिना कही गयी) बात को मानो सुन कर जो कहता है कि 'क्या कहते हो' यह आकाशभाषित कहलाता है'।।२४०॥
(भाणे लास्यसंयोजनम् )
लास्याङ्गानि दशैतस्मिन् संयोज्यान्यत्र तानि तु ।
भाण में लास्य का संयोजन- भाण में लास्य के दस अङ्गों का भी संयोजन करना चाहिए।।२४१पू.॥
(लास्यस्याङ्गानि)
गेयपदं स्थितपाठ्यमासीनं पुष्पगन्धिका ।। २४१।। प्रच्छेदकस्त्रिमूढं च सैन्धवाख्यं द्विमूढकम् ।।
उत्तमोत्तमकं चान्यदुक्तप्रत्युक्तमेव च ।। २४२।।
लास्य के दस अङ्ग- लास्य के ये दस अङ्ग हैं- (१) गेयपद (२) स्थितपाठ्य (३) आसीन (४) पुष्पगन्धिका (५) प्रच्छेदक (६) त्रिमूढ़ (७) सैन्धव (८) द्विमूढक (९) उत्तमोत्तमक और (१०) उक्त-प्रत्युक्त ।।२४१-२४२।।
अथ गेयपदम्
वीणादिवादनेनैव सहितं यत्र भाव्यते ।
ललितं नायिकागीतं तद् गेयपदमुच्यते ।। २४३।।
(१) गेयपद- वीणा इत्यादि के साथ जो नायिका के द्वारा ललित गान गाया जाता है, वह गेयपद कहलाता है।।२४३।।
(अथ स्थितपाठ्यम् )
चञ्चत्पुटादिना वाक्याभिनयो नायिकाकृतः ।
भूमिचारीप्रचारेण स्थितपाठ्यं तदुच्यते ।। २४४।
(२) स्थितपाठ्य- भूमि पर विचरण के साथ चञ्चल पलक इत्यादि द्वारा नायिका का किया गया वाक्य का अभिनय स्थितपाठ्य कहलाता है।।२४४।।