________________
[ ४३० ]
रसार्णवसुधाकरः
स्त्रीप्रायचतुरङ्कादिभेदकं चेन्न तन्मतम् ।। २२६ ।। एकद्वित्र्यङ्ककपात्रादिभेदेनानन्तता यतः । देवीवशात् सङ्गमेन भेदश्चेत् तन्न युज्यते । मालविकाग्निमित्रादौ नाटिकात्वप्रसङ्गतः ।। २२७।।
प्रश्न- नाटिका में स्त्री (पात्रों) की अधिकता होती है और चार ही अङ्क वाली होती है ? उत्तर- ऐसी बात नहीं है। एक, दो या तीन अङ्कों (का विभाजन) और पात्र इत्यादि के भेद के कारण भेद करने पर रूपकों की संख्या अनन्त हो जाएगी ।। २२६उ. २२७पू.।।
प्रश्न- (नाटिका में नायक और नायिका का) समागम देवी (महारानी) के वशवर्ती होता है ? उत्तर - यह ठीक नहीं है क्योंकि मालविकाग्निमित्र इत्यादि में भी नायक और नायिका का मिलन महरानी के वशवर्ती ही है, इससे ये भी नाटिकाएँ हो जाएँगे ॥ २२७ ॥
प्रकरणिकानाटिकयोरनुसरणीया हि नाटिकासरणिः ।
अत एव भरतमुनिना नाट्यं दशधा निरूपितं पूर्वम् ।। २२८ ।। नाटिका की अनुसरणि (रचनाविधा ) के लिए प्रकरण और नाटक का अनुसरण करना चाहिए। अर्थात् नाटक और प्रकरण के अनुसार ही नाटिका की भी रचना होती है। इसलिए भरतमुनि ने दश प्रकार के ही रूपकों का निरूपण किया है ।। २२८ ॥
अथाङ्क
ख्यातेन वा कल्पितेन वस्तुना प्राकृतैर्नरैः । अन्वितैः कैशिकीहीनः सात्त्वत्यारभटीमृदुः ।। २२९।। स्त्रीणां विलापव्यापारैरुपेतः करुणाश्रयः । नानासङ्ग्रामसन्नाहप्रहारमरणोत्कटः ।। २३० ।। मुखनिर्वाहवान् यः स्यादेकद्वित्र्यङ्क इच्छया । उत्सृष्टिकाङ्कः स ज्ञेयः सविष्कम्भप्रवेशनः ।। २३१।। अस्मिन्नमङ्गलप्राये कुर्यान्मङ्गलमन्ततः । प्रयोज्यस्य वधः कार्यः पुनरुज्जीवनावधिः ।। २३२।। उज्जीवनादप्यधिकं मनोहरफलोऽपि वा । विज्ञेयमस्य लक्ष्यं तु करुणाकन्दलादिकम् ।। २३३ ।।
अङ्क- अङ्क प्रख्यात अथवा कवि कल्पित विषय-वस्तु से युक्त तथा साधारण
पुरुष के नायक वाला, कैशिकी वृत्ति से रहित और अल्प सात्त्वती और आरभटी वृत्ति वाला होता है। यह करुण रस के आश्रित स्त्रियों के विलाप व्यापार से युक्त होता है। अनेक प्रकार के सङ्ग्रामों वाली सेना के प्रहार से मृत्यु के कारण उत्कट होता है। मुख