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रसार्णवसुधाकरः
सम्बन्धी कथन के द्वारा अपने-अपने पक्ष की स्थापन- योग्यता की संयोजना के कारण अवस्कन्द है।
अथ व्यवहारः
व्यवहारः स्वसंवादो द्वित्राणां हास्यकारणम् ।
(३) व्यवहार- दो-तीन लोगों का हास्यकारक वार्तालाप व्यवहार कहलाता है।।२७८पू.॥
यथा तत्रैव (आनन्दकोशनाम्नि) प्रहसने
बौद्धः- (यतिं विलोक्य) कुतो मुण्डः एकदण्डी। मिथ्यातीर्थ- (विलोक्य दृष्टिमपकर्षन् आत्मगतम्) क्षणिकवादी न संभाषणीय एव। तथापि दण्डमन्तर्धाय निरुत्तरं करोमि। (प्रकाशम) अये शून्यवादिन! अदण्डो मुण्डोऽहमागलादस्मि।
__ जैन:- (आत्मगतम्) नूनमसौ मायावादी। भवतु, अहमपि किमप्यन्तीय प्रस्तुतं पृच्छामि। (प्रकाशम्) अये महापरिणामवादिन् बृहद्वीज लोग्नां समानजातीयत्वेऽपि केषाञ्चित् सर्तनम् अन्येषां संरक्षणमिति व्यवस्थितेः किं कारणम् । मिथ्यातीर्थ:- जीवदमेध्यमङ्गधारको नरपिशाचोऽयम् अन्तर्घायापि न संभाषणीयः। निष्कच्छकीर्तिः- (सादरम्) सखे! आर्हतमुने! वादे त्वयायमप्रतिपत्तिं नाम निग्रहस्थानमारोपितो मायावादी। मिथ्यातीर्थ:(आत्मगतम्) नूनमिमावपि मादृशावेव लिङ्गधारणमात्रेण कुक्षिम्भरी स्याताम्। (इति पिप्पलमूलवेदिकायां (निषीदति।)
इत्यत्र यतिबौद्धजनानां संवादो व्यवहारः । जैसे (आनन्दकोश नामक) प्रहसन में
बौद्ध- (यति को देखकर) यह मुण्डित शिर वाला एकदण्डी (एक दण्ड धारण करने वाला अथवा भिक्षुओं का समुदाय) कहाँ से (आ गया)। मिथ्यातीर्थ(देखकर आँख चुराता हुआ अपने मन में) इस क्षणिकवादी (बौद्ध) से बात नहीं ही करना चाहिए तथापि दण्ड को छिपाकर (इसे) निरुत्तर कर देता हूँ। (प्रकट रूप से) अरे! शून्यवादी! मैं आकण्ठ से दण्डरहित तथा मुण्डित शिर वाला हूँ।
जैन- (अपने मन में) निश्चित ही यह मायावादी (वेदान्त वाला है) अच्छा मैं भी कुछ अन्तर्हित करके (भीतर रख कर) प्रस्तुत के विषय में पूछता हूँ (प्रकट रूप से) अरे महापरिणामवादी बृहबीज! समान जाति वाले कुछ बालों को कटवाने तथा कुछ (बालों) की सुरक्षा- इस व्यवस्था का क्या कारण (प्रमाण) है। मिथ्यातीर्थ- जीवन से अमेध्य अङ्ग को धारण करने वाले इस नर-विशाच से अन्तर्हित करके भी बात नहीं करनी चाहिए। निष्कच्छकीर्ति(आदरपूर्वक) हे मित्र! अर्हत मुनि! तुम्हारे द्वारा वाद में यह मायावादी (यति) प्रत्यक्षज्ञान में पछाड़ (पराजित कर) दिया गया। मिथ्यातीर्थ- (अपने मन में) निश्चित ही ये दोनों भी मेरे