Book Title: Rasarnavsudhakar
Author(s): Jamuna Pathak
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series

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Page 475
________________ | ४२४] रसार्णवसुधाकरः (तृतीय) अङ्क में पूर्ववर्ती (द्वितीय अङ्क) की कथावस्तु (अर्थ) के अविच्छेद (तारतम्य न टूटने) के कारण वसिष्ठ, विश्वामित्र इत्यादि लोगों के समाभाषण (परस्पर बातचीत) की सूचना देना कल्पित किया गया है। अत: यह अङ्कास्य है।।१९३उ.-१९६पू.॥ अथाङ्कावतार: अङ्कावतारः पात्राणां पूर्वकार्यानुवर्तिनाम् ।।१९६।। अविभागेन सर्वेषां भाविन्यङ्के प्रवेशनम् । द्वितीयाङ्के मालविकाग्निमित्रे स निरूप्यताम् ।।१९७।। पात्रेणाङ्कप्रविष्टेन केवलं सूचितत्वतः । भवेदाङ्कादबाह्यत्वमङ्कास्याङ्कावतारयोः ।।१९८।। (४) अङ्कावतार- पूर्ववर्ती (अङ्क) के कार्यों का अनुसरण करने वाले सभी पात्रों का परवर्ती अङ्क में अविभाग (पूर्ववर्ती अङ्क के कथानक का विच्छेद किये बिना) ही प्रवेश करना अङ्कावतार कहलाता है। जैसे मालविकाग्निमित्र के द्वितीय अङ्क में (सपरिवार राजा का प्रथम अङ्क से द्वितीय अङ्क में प्रवेश करने को) देख लेना चाहिए।।१९६उ.-१९७पू.।। अङ्कास्य और अङ्कावतार में अङ्क में प्रविष्ट पात्र द्वारा दूसरे अङ्क के (कथावस्तु की) सूचना होने से वह पूर्ववर्ती अङ्क से बाहर नहीं होता। अथ प्रवेशक: यन्नीचैः केवलं पात्रै विभूतार्थसूचनम् । अङ्कयोरुभयोर्मध्ये स विज्ञेयः प्रवेशकः ।।१९९।। सोऽयं चेटीद्वयालापसंविधानोपकल्पितः । । मालतीमाधवे प्राज्ञैर्द्वितीयाङ्के निरूप्यताम् ।। २००।। प्रवेशक- केवल निम्न पात्रों द्वारा दो अङ्कों के बीच में भावी आने वाले और भूत (बीत हुए) कार्य की सूचना देने को प्रवेशक समझना चाहिए। यह दो चेटियों की बातचीत के विधान द्वारा उपकल्पित होता है। जैसे मालती-माधव के द्वितीय अङ्क (के प्रारम्भ) में प्राज्ञों को समझ लेना चाहिए।॥२०॥ (असूच्यवस्तु) असूच्यं तु शुभोदात्तरसभावनिरन्तरम् । असूच्य वस्तु- असूच्य वस्तु निरन्तर शुभ और उदात्त रसभाव से युक्त होती है।।२०१पू.॥ (क्वचिदङ्कस्यैव कल्पनम्) प्रारम्भे यद्यसूच्यं स्यादङ्कमेवात्र कल्पयेत् ।। २०१।

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