Book Title: Rasarnavsudhakar
Author(s): Jamuna Pathak
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series

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Page 474
________________ - तृतीयो विलासः [४२३] पर्याप्त है। तो रामभद्र का गुणगान करूँ। (कुछ जोर से) ____ कौशल्यानन्दन भूकाश्यप (दशरथ) के पुत्र राम की जय हो जो सूर्यवंश के महान् तिलक हैं, त्रैलोक्य की रक्षा के लिए मणिसदृश हैं, महामुनि विश्वामित्र के निष्कपट शिष्य हैं, रघुवंश में श्रेष्ठ हैं, ताडका को मारने वाले हैं और अधिक क्या साक्षात् नारायण हैं।(7/3)638।। (नेपथ्य में) कामदेव के उत्कट अहङ्कार भ्रष्ट करने के आचार्य, ब्रह्मा के कालदण्ड में हाथ देने वाले अर्थात् ब्रह्मा के शिरच्छेदक, शिरस्थगडा से चञ्चल चन्द्रमा वाले पार्वतीपति के प्रचण्ड वासुकी की प्रत्यञ्चा के शब्द वाले धनुष को खींचते हुए (राम ने) जो बीच में ही तोड़ डाला उसका शब्द त्रैलोक्य में सुना जा रहा है और वह फैलता हुआ त्रैलोक्य में समा नहीं पा रहा है।।(7/4)639।। यहाँ प्रवेश किये कर्पूरचण्ड के द्वारा यवनिका के भीतर स्थित चन्दनचण्ड के साथ पर्याय-प्रवृत्त वाग्विलास से ताडकावध इत्यादि द्वारा विभीषण को अभय प्रदान करने वाले रामचरित का बहुलता से प्रयोग के अनौचित्य की सूचना देने के कारण यह खण्डचूलिका है। (खण्डचूलिका विषयकान्यमतनिराकरणम् ) एनां विष्कम्भमेवान्ये प्राहु तन्मतं मम । अप्रविष्टस्य संल्लापो विष्कम्भे नहि युज्यते ।।१९२।। तद्विष्कम्भशिरस्कत्वान्मतेयं खण्डचूलिका । खण्डचूलिका विषयक अन्य मत का निराकरण इस (खण्डचूलिका) को कुछ आचार्य विष्कम्भक ही मानते हैं किन्तु मेरा ऐसा मत नहीं है क्योंकि रङ्गमञ्च पर प्रवेश न करने वाले पात्र के संलाप को विष्कम्भक में कहना उचित नहीं है। विष्कम्भक का निराकरण हो जाने से यह खण्डचूलिका है। अथाङ्कास्यम् पूर्वाङ्कान्ते सम्प्रविष्टः पात्र व्यङ्कवस्तुनः ।।१९३।। सूचनं तदविच्छित्त्यै यत् तदङ्कास्यमीरितम् । तथा हि वीरचरिते द्वितीयाकावसानके ।।१९४।। प्रविष्टेन सुमन्त्रेण सूचितं रामविग्रहे । वसिष्ठविश्वामित्रादिसमाभाषणलक्षणम् ॥१९५।। वस्तूत्तरारे पूर्वार्थाविच्छेदेनैव कल्पितम् । (३) अङ्कास्य- कथानक की अविच्छिन्नता के लिए पूर्ववर्ती अङ्क के अन्त में प्रविष्ट पात्रों द्वारा परवर्ती अङ्क की कथावस्तु की सूचना देना अङ्कास्य कहलाता है। जैसे महावीरचरित के रामविग्रह (नामक) द्वितीय अङ्क के अन्त (अवसान) में प्रवेश करने वाले सुमन्त्र के द्वारा उत्तरवर्ती

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