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तृतीयो विलासः
दिक्पालों के सामने, सूर्य को साक्षी रखकर राक्षस गृहवासरूप निन्दा - वचन से मुक्ति पाने के लिए वैदेही ने आग में प्रवेश किया और शुद्ध होकर निकल आयीं । अग्नि परीक्षा में अपने को शुद्ध साबित करके प्रमाणित कर दिया कि उसके प्रति प्रचारित कलङ्क की बात केवल कल्पनामात्र थी ।।636 ।।
इत्यादौ नेपथ्यगतैरेव पात्रैः सीताज्वलनप्रवेशनिर्गमादीनामर्थानांप्रयोगानुचितानां सूचनादियं चूलिका |
इत्यादि में नेपथ्य में स्थित पात्रों द्वारा सीता के अग्नि में प्रवेश तथा उससे निकलने इत्यादि अर्थों के प्रयोग के अनौचित्य की सूचना देने से यह चूलिका है।
अङ्कमध्ये यथा रत्नावल्यां द्वितीयाङ्के (२.२)(नेपथ्ये कलकलः)
कण्ठे कृत्तावशेषं कनकमयमधः शृङ्गलादाम कर्षन् क्रान्त्वा द्वाराणि हेलाचलचरणरणत्किङ्किणीचक्रवालः । दत्ताशङ्कोऽङ्गनानामनुसृतसरणिः
सम्भ्रमादश्वपालैः
प्रभ्रष्टोऽयं प्लवङ्गः प्रविशति नृपतेर्मन्दिरं मन्दुरायाः ।।637।।
[ ४२१ ]
अत्र नेपथ्यगतैः पात्रैः प्रयोगानुचितस्य वानरविप्लवांद्यर्थस्य सूचनादियं
मध्यचूलिका |
अङ्क के मध्य में चूलिका- जैसे (रत्नावली (२.२) में
(नेपथ्य में कोलाहल होता है - ) गले में टूटने से बची हुई सुनहली जंजीर को नीचे भूमि पर खींचते हुए, उछलकूद के कारण चञ्चल चरणों में बजते इस घुंघरुओं वाला, दरवाजा को लाँघकर (अन्तःपुर की) स्त्रियों को आतंकित करने वाला, घबराकर अश्व-रक्षकों द्वारा पीछा किया जाता हुआ घुड़सवार से छूटकर भागा हुआ यह वानर राजमहल में प्रवेश कर रहा है । 1637।। यहाँ नेपथ्य में स्थित पात्रों द्वारा वानरों द्वारा कृत विप्लव इत्यादि अर्थ के प्रयोग के अनौचित्य की सूचना देने से यह अङ्क के मध्य में चूलिका है।
अथ खण्डचूलिकारङ्गनेपथ्य
आदौ केवलमङ्कस्य कल्पिता खण्डचूलिका । प्रवेशनिर्गमाप्राप्तेरियमङ्काद्
संस्थायिपात्रसंल्लापविस्तरैः ।। १९० ।।
बहिर्गता ।। १९१ ।
(आ) खण्डचूलिका - केवल अङ्क के प्रारम्भ में रङ्गमञ्च नेपथ्य में स्थित पात्रों के संलाप (बातचीत) के विस्तार से सङ्केतित (कल्पित) चूलिका खण्ड- चूलिका होती है। (पात्रों के) प्रवेश और निर्गमन की प्राप्ति न होने से यह अङ्क से बाहर होती है ।। १९०३ - १९१पू.।।