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तृतीयो विलासः
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कथावस्तु के दो प्रकार- वस्तु सदा सूच्य और असूच्य भेद से दो प्रकार की होती है।।१८१पू.।।
(तत्र सूच्यवस्तु)
रसहीनं भवेद् यत्तु वस्तु तत् सूच्यमुच्यते ।।१८१।। सूच्य वस्तु- जो वस्तु रसहीन होती है, वह सूच्य कहलाती है।।१८१उ.॥ (सूच्यवस्तुसूचकाः)
यद्वस्तु नीरसं तत्तु सूचयेत् सूचकास्त्वमी ।
विष्कम्भचूलिकाङ्कास्याङ्कावतारप्रवेशकाः ।।१८२।।
सूच्य वस्तु के सूचक- जो नीरस वस्तु है, उसकी सूचना देनी चाहिए। (१) विष्कम्भक (२) चूलिका (३) अङ्कास्य (४) अङ्कावतार और (५) प्रवेशक- ये पाँच सूचक होते हैं।।१८२।।
(तत्र विष्कम्भकः)
तत्र विष्कम्भको भूतभाविवस्त्वंशसूचकः ।
अमुख्यपात्ररचितः संक्षेपप्रतियोजितः ।।१८३।।
(१) विष्कम्भक- बीते (भूत) और आने वाले कथांशों का सूचक, साधारण (अप्रधान) पात्र द्वारा प्रयोजित तथा संक्षिप्ता से युक्त अर्थ वाला विष्कम्भक होता है।।१८३।।
(विष्कम्भकस्य प्रकारद्वयम् )
स शुद्धो मिश्र इत्युक्तः विष्कम्भक के प्रकार- वह विष्कम्भक शुद्ध और मिश्र भेद से दो प्रकार का कहा
गया है।
(अथ मिश्रः)
मिश्रः स्यात्रीचमध्यमैः । सोऽयं चेटीनटाचार्यसंल्लापपरिकल्पितः ।।१८४।।
मालविकाग्निमित्रस्य प्रथमाङ्के निरूप्यताम् ।
मिश्र विष्कम्भक- नीच और मध्यम पात्र द्वारा प्रयुक्त विष्कम्भक मिश्र विष्कम्भक होता है। वह चेटी और नटाचार्य की बातचीत से परिकल्पित होता है। वह मालविकाग्निमित्र के प्रथम अङ्क में प्रयुक्त किया गया है।।१८४उ.-१८५पू.।।
शुद्धः केवलमध्योऽयमेकानेककृतो द्विधा ।।१८५।। रत्नावल्यामेकशुद्धः प्राप्तयौगन्धरायणः ।
रसा.३०