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प्रथमो विलासः
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३. वाग्ज अनुभाव- १. आलाप, २. विलाप, ३. संल्लाप, ४. प्रलाप, ५. अनुलाप, ६. अपलाप, ७. सन्देश, ८. अतिदेश, ९. निर्देश, १०. उपदेश, ११. अपदेश तथा १२. व्यपदेश- ये बारह प्रकार के वाग्ज अनुभाव आचायों द्वारा कहे गये हैं।।२२०-२२१॥
तत्रालाप:चाटुप्रायोक्तिरालापः १. आलाप- चाटुकारिता से पूर्ण कथन आलाप कहलाता है। यथा ममैव
कस्ते वाक्यामृतं त्यक्त्वा शृणोत्यन्यगिरं बुधः ।
सहकारफलं त्यक्त्वा निम्बं चुम्बति किं शुकः ।।135।। जैसे शिङ्गभूपाल का ही
कौन बुद्धिमान् तुम्हारे वचनामृत को छोड़कर अन्य बात को सुनता है। क्या आम के फल को छोड़कर शुक नीम (नीबकौड़ी) को चुंगता (खाता है), कभी नहीं ।।135 ।।
यथा वा
धत्से धातुर्मधुप! कमले सौख्यमर्धासिकायां मुग्धाक्षीणां वहसि मृदुना कुन्तलेनोपमानम् । चापे किञ्च व्रजसि गुणतां शम्बरारेः किमन्यैः
पूजापुष्पं भवति भवतो भुक्तशेषः सुराणाम् ।।136।। अथवा जैसे
हे भ्रमर! कमल में जो तुम सुख (आनन्द) को धारण करते हो इसीलिए मुग्धनेत्रों वाली (रमणी) के होठों पर कोमल केशों के उपमान (तुलनीय वस्तु) को धारण करते हो। और क्या? कामदेव के धनुष में कुछ विशेष महत्त्व को प्राप्त करते हो, अधिक क्या कहना देवताओं के पूजा का पुष्प तुम्हारे रसपान से बचा हुआ (जूठा) होता है।।136।। अथ विलाप:
विलापो दुःख वचः। २. विलाप- कष्ट में उत्पन्न कथन विलाप कहलाता है।।२२२। यथा (हनुमन्नाटके १४/९१)
आर्यामरण्ये विजने विमोक्तुं श्रोतुं च तस्याः परिदेवितानि । सुखेन लङ्कासमरे मृतं मा