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रसार्णवसुधाकरः ..
हेत्ववधारणम्।
जैसे अभिज्ञानशाकुन्तल (५/२२) में
स्त्रियों में जो बिना सीखे चतुरता होती है वह मनुष्य- अतिरिक्त स्त्रियों में (भी) देखी जाती है। जो ज्ञानवान् (मनुष्ययोनि की) स्त्रियाँ हैं, उनका तो कहना ही क्या, उदाहरणार्थ कोयलें आकाश में जाने (जन्म देने के बाद उड़ने) से पहले अपनी सन्तानों के समूह का अन्य पक्षियों से पालन-पोषण करवाती हैं।।571 ।।
यहाँ कोयल के उदाहरण से उपबृंहित स्त्रीत्व के कारण झूठ बोलने रूपी अर्थ का निश्चय हेत्त्ववधारण है।
अथ स्वप्नः
स्वप्नो निद्रान्तरे मन्तुभेदकृद् वचनं मतम् ।
(18) स्वप्न- निद्रा में अपराध को प्रकट करने वाला कथन स्वप्न कहलाता है।।९१पू.॥
यथा मालविकाग्निमित्रे (४/१५पद्यादनन्तरम्)
विदूषकः- (उत्स्वप्नायते) भोदि मालविए (भवति मालविके)। निपुणिकासुदं भट्टिणीए। कस्स एसो अत्तणिओअसंपादणे विस्ससणिज्जो हदासो। सव्वकालं इदो एव्व सोत्थिआवणमोदएहि कुच्छिं पूरिअ संपदं मालविअं उस्सिविणावेदि (श्रुतं भट्टिन्या। कस्यैष आत्मनियोगसम्पादने विश्वसनीयो हताशः। सर्वकालमित एव स्वस्तिवाचनमोदकैः कुक्षिं पूरयित्वा साम्प्रतं मालविकाम् उत्स्वप्नायते)। विदूषकःइरावदिं अदिक्कमंती होहि। (इरावतीमतिक्रामन्ती भव)।
इत्यत्रं विदूषकस्योत्स्वप्नायितं स्वप्नः । जैसे मालविकाग्निमित्र में (४/१५ पद्य से बाद )
विदूषक- (स्वप्न में प्रलाप करता है) हे देवि मालविके! निपुणिका- क्या देवी (आप) ने सुना। अपना कार्य सिद्ध कराने के लिए इस अभागे पर कौन विश्वास करेगा? हमेशा तो यह आप के दिये हुए पूजा के मोदकों से पेट भरता है और आज स्वप्न में भी मालविका सूझ रही है। विदूषक- इरावती को पराजित करने वाली बनो।
यहाँ विदूषक स्वप्न में प्रलाप (द्वारा अपराध को प्रकट) कर रहा है। अथ लेख:
विवक्षितार्थकलिता पत्रिका लेख ईरितः ।।११।। (१९) लेख- अभीष्ट अर्थ (कार्य) का पत्र लिखना लेख कहलाता है। यथा विक्रमोर्वशीये (२.११ पद्यादन्तन्तरम् )