Book Title: Rasarnavsudhakar
Author(s): Jamuna Pathak
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series

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Page 466
________________ तृतीयो विलासः [ ४१५ ] सूचित रक्त से अलङ्कृत इत्यादि श्लिष्ट - वाक्य के सहसा प्रस्तुत करने से सम्बन्धित कथन के कारण गण्ड है। अथावस्यन्दितम् - पूर्वोक्तस्यान्यथा व्याख्या यत्रावस्यन्दितं हि तत् । (९) अवस्यन्दित - जो पहले कहे गये वचन की दूसरी प्रकार से करना अवस्यन्दित है।। १७७पू.।। यथा वेणीसंहारे (१.७) 'सूत्रधारः - सत्पक्षा मधुरगिरः प्रसाधिताशा मदोद्धतारम्भाः । निपतन्ति धार्तराष्ट्राः कालवशान्मेदिनीपृष्ठे 11631।। जैसे वेणीसंहार (१.७) में सूत्रधार (1) सुन्दर पङ्खवाले, मीठी बोली वाले, दिशाओं को सुशोभित करने वाले, हर्ष के कारण उद्दाम व्यापार (क्रीडा) वाले हंस (शरद् ऋतु के) समय के कारण भूतल पर उतर आये हैं। (दूसरा अर्थ समझना) श्रेष्ठ सेना वाले अथवा उत्तम व्यक्तियों से सम्पन्न, मधुरभाषी, दिशाओं को वश में करने वाले, अहङ्कार के कारण धृष्टतापूर्ण कार्य करने वाले, धृतराष्ट्र के पुत्र मृत्यु के कारण भूतल पर (मरकर) गिर रहे हैं। 1631 ।। (प्रविश्य सम्भ्रान्तः) पारिपार्श्विकः- शान्तं पापम्। प्रतिहतममङ्गलम्। सूत्रधार :- मा भैषीः । ननु शरत्समयवर्णनाशंसया हंसान् धार्तराष्ट्रा इति व्यपदिशामि । अत्र पूर्वोक्तस्य सुयोधनादिनिपातस्य हंसपात त्वेन व्याख्यानादिदमव- स्यन्दितम् । (प्रवेश करके घबराहटपूर्वक) पारिपार्श्विक - आर्य पाप शान्त हो, अमङ्गल विनष्ट हो । सूत्रधार- (लज्जा और मुस्कराहट के साथ) हे मारिष (आदरणीय ) ! शरद् ऋतु के वर्णन के अभिप्राय से हंस को धार्तराष्ट्र- ऐसा कह रहा हूँ ( अर्थात् हंसों को धार्तराष्ट्र कहा जा रहा है)। यहाँ पूर्वोक्त सुयोधन इत्यादि के भूमि पर गिरने का हंस के उतरने का व्याख्यान करने से यह अवस्यन्दित है । अथ नालिका प्रहेलिका निगूढार्था हास्यार्थं नालिका स्मृता ।। १७७।। अन्तर्लापा बहिलपित्येषा द्वेधा समीरिता । (१०) नालिका - हास्य के लिए प्रयुक्त गूढ़ अर्थ वाली पहेलिका नालिका

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