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रसार्णवसुधाकरः ..
अत्र नटसूत्रपारयोः परस्परस्पर्मया स्वस्वप्रयोगसामीप्रकाशनादपिबलम्। जैसे वीरभद्रविजृम्मण में
(नट-) मुझ जैसे निपुण (अभिनय-कुशल) व्यक्ति के रहते हुए आप को (अभिनय की सफलता के लिए) चिन्ता नहीं करनी चाहिए। कौन सा अभिनय मेरे लिए दुष्कर है? अर्थात् मेरे लिए कोई भी अभिनय दुष्कर नहीं है। (सूत्रधार-) हे गर्व करने वाले क्या तुम कुछ भी नहीं जानते? तुमने मेरी (अभिनय-विषयक) कुशलता के विषय में कुछ भी नहीं जानते? (नटी)- तुम लोगों के कहे गये प्रसङ्ग द्वारा अपनी प्रशंसा की कथा बनी रहे (अर्थात् तुम लोगों की अपनीअपनी प्रशंसा करने से मेरा कोई मतलब नहीं है) में अभिनय के सभी कार्यों को अपने वश में रखने वाली पत्नी (नटी) हूँ। इसलिए अभिनय क्रिया में यह मैं शीघ्र तैयार हूँ।।629।।
यहाँ नट और सूत्रधार का परस्पर स्पर्धा से अपने अभिनय के सामर्थ्य को प्रकट करने से अधिबल है।
अथ गण्डम्
गण्डं प्रस्तुतसम्बन्यि भिन्नार्थ सहसोदितम् ।।१७६।।
(८) गणड- प्रस्तुत विषय से सम्बन्धित किन्तु उससे भिन्न अर्थ का अकस्मात् कथन गण्ड है ॥१७६उ.॥
यथा वेणीसंहारे (१.७)- . निर्वाण वैरदहनाः प्रशमादरीणां नन्दन्तु पाण्डुतनया सह माधवेन । रक्तप्रसाधितभुवः सतविग्रहाच
स्वस्था भवन्तु कुरुराजसुताः सभृत्याः।।630।। जैसे वेणीसंहार (१/७)में
(१) सूत्रधार द्वारा कथित अर्थ- शत्रुओं के शान्त हो जाने के कारण शत्रुता रूपी आग को शान्त कर लेने वाले पाण्डव कृष्ण के साथ आनन्द करें। चाहने वाले (पाण्डवों) को भूमि प्रदान करने वाले, शान्त युद्ध वाले (कौरव) भी सेवकों सहित स्वस्थ रहें।
___(2)(भिन्न अर्थ)- शत्रुओं के विनष्ट हो जाने के कारण शत्रुता रूपी आग को शान्त कर लेने वाले पाण्डव कृष्ण के साथ आनन्द करें। अपने खून से पृथ्वी को अलङ्कृत करने वाले, क्षत-विक्षत शरीर वाले कौरव भी सेवकों-सहित स्वर्गवासी हों।।630।।
अत्र सूत्रमारेण विवक्षिते स्वर्गस्थितिलक्षणार्थसूचकस्य रक्तप्रसापितभुव इत्यादिश्लिहवाक्यस्य सहसा प्रस्तुतसम्बन्धितया भाषितवाद् गण्डम् ।।
यहाँ सूत्रधार के द्वारा विवक्षित अर्थ में स्वर्ग में निवास की लक्षणा वाले अर्थ से