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रसार्णवसुधाकरः
प्रधानस्य प्रबन्यस्य तथा प्रस्तावना स्मृता ।।१३५।।
नाटक का प्रारम्भ- उस नाटक को प्रारम्भ करने का प्रकार मेरे (शिङ्गभूपाल) द्वारा कहा जा रहा है- विधि (यज्ञ) में जिस प्रकार प्रारम्भ में सङ्कल्प किया जाता है उसी प्रकार प्रधान-प्रबन्ध (नाटक) के प्रारम्भ में प्रस्तावना की जाती है अर्थात् प्रस्तावना से नाटक का प्रारम्भ होता है।।१३४उ.-१३५॥
प्रस्तावना
अर्थस्य प्रतिपाद्यस्य तीर्थं प्रस्तावनोच्यते ।
प्रस्तावनायास्तु मुखे नान्दी कार्या शुभावहा ।।१३६ ।।
प्रस्तावना- प्रतिपादित होने वाले कार्य के मार्ग को प्रस्तावना कहा जाता है। प्रस्तावना के प्रारम्भ में शुभ देने वाली (मङ्गलप्रद) नान्दी को करना चाहिए।।१३६उ.।।
(अथ नान्दी)
आशीर्नमस्क्रियावस्तुनिर्देशान्यतमा स्मृता । चन्द्रनामाङ्किता प्रायो मङ्गलार्थपदोज्ज्वला ।।१३७।। अष्टाभिर्दशभिः चेष्टा सेयं द्वादशभिः पदैः ।
समैर्वा विषमैर्वापि प्रयोज्येत्यपरे जगुः ।।१३८।।
नान्दी- नान्दी आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक, वस्तुनिर्देशात्मक या अन्य विषय से युक्त होती है जिसमें चन्द्रमा इत्यादि नामों से चिह्नित प्राय: मङ्गल अर्थ के कारण चमत्कृत तथा आठ दश या बारह (अक्षरों वाले) पदों समन्वित नान्दी श्रेष्ठ होती है। कुछ लोग सम अथवा विषम (अक्षरों) वाले पदों से समन्वित नान्दी का प्रयोग होना चाहिए-ऐसा मानते हैं।।१३६-१३८॥
तत्राशीरन्विता नान्दी यथा अभिरामराघवे (१.१)
क्रियासुः कल्याणं भुजगशयनादुत्थितवतः कटाक्षाः कारुण्यप्रणयरसवेणीलहरयः । हरेर्लक्ष्मीलीलाकमलदलसौभाग्यसुहृदः
सुधासारस्मेराः सुचरितविशेषैकसुलभाः ।।602 ।। अशीर्वादात्मक नान्दी जैसे अभिरामराघव(१.१) में
शेषनाग वाली शय्या से उठते हुए भगवान् (विष्णु) की कटाक्ष, करुणता के प्रणय रस वाली चोटी की लहरें, लक्ष्मी की लीला रूपी कमल-समूह के सौभाग्य (विकसित होने) के लिए मित्र होना तथा सच्चरितों के लिए विशेष रूप से सुलभ सुधासिक्त मुस्कान तुम लोगों के कल्याण करने के लिए अभिलाषा होवें।।602।।
नमस्क्रियावती नान्दी यथोत्तररामचरिते (१.१)
इदं कविम्यः पूर्वेभ्यो नमोवाकं प्रशास्महे ।