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रसार्णवसुधाकरः
विद्याधर, वत्सेश्वर (उदयन) इत्यादि रस के लिए तथा राम कृष्ण इत्यादि मोक्ष में लिए उपयोगी हैं। कतिपय आचार्य धर्म और मोक्ष में उपयोगी (नायकों में भेद नहीं मानते।।१४५-१४७॥
(चतुर्विधा कवयः-)
कवयस्तु प्रबन्याय॑स्ते भवेयुश्चतुर्विधाः ।।
चार प्रकार के कवि- प्रबन्ध कवि चार प्रकार के होते हैं- (१) उदात्त, (२) उद्धत (३) प्रौढ़ और (४) विनीत॥१४८ पू.॥
उदात्त उद्धतः प्रौढ़ो विनीत इति भेदतः।।१४८।। (१) उदात्त कवि- छिपे हुए अभिमान- युक्त उक्ति वाला कवि उदात्त कहलाता है। (तत्रोदात्तः)
अन्तगूढाभिमानोक्तिरुदात्त इति गीयते । यथा मालविकाग्निमित्रे (१/२).
पुराणमित्येव न साधु सर्व न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम् ।। सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते
मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः ।।609।।
अत्र सन्तः परीक्ष्येत्यनेन स्वकृतेः परीक्षणसमत्वकल्पितो निजगर्वः कालिदासेन विवासित इति तस्योदात्तत्वम्।
जैसे (मालविकाग्निमित्र १/२ में)
पुराने होने से ही न तो सब अच्छे हो जाते हैं, न नऐ होने से सब बुरे हो जाते हैं। समझदार लोग तो दोनों के गुण-दोषों की पूर्ण रूप से विवेचना करके, उनमें से जो अच्छा होता है, उसे अपना लेते हैं और जिनके पास अपनी समझ नहीं होती है, उन्हें तो जैसा दूसरे समझा देते हैं, उसे ही वे ठीक मान लेते हैं।।609।।
___ यहाँ (गुण दोष की विवेचना करने वाले) समझदार लोग परीक्षाकर लें इसके द्वारा अपनी कृति की परीक्षण- क्षमता से उत्पन्न गर्व कालिदास के द्वारा कहा गया है- यह उनका उदात्तत्व है।।
परापवादात् स्वोत्कर्षवादी तूद्धत उच्यते ।।१४९।।
(२) उद्धतकवि- दूसरे की निन्दा से अपने उत्कर्ष (प्रशंसा) का कथन करने वाला कवि उद्धत कहलाता है।।१४९उ.॥
यथा मालतीमाधवे (१.६)
ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञां