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रसार्णवसुधाकरः
( 2 ) पात्र द्वारा गृहीत अर्थ- शत्रुओं को विनष्ट हो जाने के कारण शत्रुता रूपी अग्नि को शान्त कर देने वाले पाण्डव (युधिष्ठिर इत्यादि) कृष्ण के साथ आनन्द करें। अपने खून से पृथ्वी को अलङ्कृत करने वाले, क्षतविक्षत शरीर वाले कौरव भी सेवकों के सहित स्वर्गवासी हों 11616 ।।
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अत्रोत्तराधें सूत्रधारेण धार्तराष्ट्राणां स्वर्गस्थितिनिरुपद्रवलक्षण- योरर्थयोर्विवक्षितयोः सतोर्भीमेन 'स्वस्था भवन्तु मयि जीवति धार्तराष्ट्रा' इति निरुपद्रवलक्षणस्यैवार्थविशेषस्य ग्रहणेन प्रवेशः कृत इत्ययमर्थेन कथोद्घातः ।
यहाँ उत्तरार्ध में सूत्रधार द्वारा कौरवों के स्वर्ग- गमन की स्थिति उपद्रव रहित अर्थ के विवक्षित होने पर भीमसेन द्वारा 'मेरे रहते कौरव क्या स्वस्थ्य रहेंगे' इस उपद्रव रहित अर्थ विशेष का ग्रहण करके प्रवेश किया गया। इसलिए यह अर्थ से कथोद्घात है। अथ प्रवर्तकः
आक्षिप्तः कालसाम्येन प्रवेशः स्यात् प्रवर्तकः ।
(२) प्रवर्तक - जहाँ पर किसी काल (ऋतु) के वर्णन की समानता के द्वारा (पात्र के) प्रवेश का आक्षेप (सूचना) हो वह प्रवर्तक होता है ।। १६१पू. ।।
यथा प्रियदर्शिकायाम्
प्रवर्तक है।
घनबन्धननिर्मुक्तः कन्याग्रहणात् तुलां प्राप्य ।
रविरधिगतस्वधामा प्रतपति किल वत्सराज इव ।।617 ।। अत्र शरत्कालसामान्येन वत्सराजस्याक्षेपप्रवेशात् प्रवर्तकः ।
जैसे प्रियदर्शिका (१/५) में
यह सूर्य मेघ के बन्धन से मुक्त होकर कन्या राशि में रहने के बाद तुला राशि को प्राप्त करके अपने तेज से युक्त पुनः उसी प्रकार तप रहा है जैसे वत्सराज दृढ़ कारागार से मुक्त होकर (प्रद्योत की) कन्या (वासवदत्ता) को ग्रहण करने से परम उत्कर्ष को प्राप्त होकर अपनी राजधानी में पहुँचकर प्रलय से तप रहें हैं ।।617 ।।
यहाँ शरत्काल की समानता से वत्सराज के सूचित (सूचना प्राप्त) प्रवेश के कारण
अथवा यथा बालरामायणे (१.१६)
प्रकटितरामाभ्भोजः कौशिकवान् सपदि लक्ष्मणानन्दी । शरचापनमनहेतोरयमवतीर्णः
शरत्समयः 11618 ।।
अत्र विश्वामित्ररामलक्ष्मणानां शरद्वर्णनसाम्येन प्रवेशः प्रवर्तकः ।
अथवा जैसे बालारामायण (३.१६) में
(शिव के धनुष के मर्दन- हेतु यह शरत्काल अविर्भूत हो गया है। इससे राम रूपी