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तृतीयो विलासः
तेषां
वीथ्यङ्गसंप्रथा उद्घात्यकावलगिते काक्कल्यधिबले
असत्प्रलापव्याहारौ
वीथ्यामावश्यकत्वतः । प्रपञ्चत्रिगते छलम् ।। १७० ॥ गण्डमवस्यन्दितनालिके ।
मृदवं च त्रयोदश ।। १७१।
[ ४०९ ]
वीथी के अङ्ग
आमुख के अङ्गों को कहा जा चुका है। अब वीथी के अङ्गों को कहा जा रहा है जो आमुख में और वीथी में सामान्य रूप से सम्मत है। उस वीथी में आवश्यकता से (१) उद्घात्यक, (२) अवलगित ( ३ ) प्रपञ्च ( ४ ) त्रिगत, (५) छल (६) वाक्केलि (७) अधिबल (८) गण्ड (९) अवस्यन्दित (१०) नालिका (११) असत्प्रलाप (१२) व्याहार और (१३) मार्दव ये तेरह अङ्ग होते हैं ।। १६९-१७१ ॥
(अथोद्घात्यकः)
तत्रोद्घात्यकमन्योन्यालापमाला द्विधा हि तत् । गूढ़ार्थपदपर्यायक्रमात् प्रश्नोत्तरक्रमात् ।। १७२ ।।
(१) उद्घात्यक:- गूढार्थपद के पर्याय के क्रम से तथा प्रश्नोत्तर के क्रम से दो व्यक्तियों की परम्परा बातचीत श्रंखला उद्घात्यक कहलाती है। वह दो प्रकार की होती है(१) गूढ़ार्थ पदपर्याय क्रम से, (२) प्रश्नोत्तर क्रम से ।। १७२ ॥
तत्र गूढ़ार्थपदपर्यायादुद्धात्मकं यथा वीरभद्रविजृम्भनामनि डिमेसखे कोऽयं रौद्रः कथय महितः कोऽपि हि रसो
रसो नामायं कः स्मृतिसुरभिरास्वादमहिमा । समास्वादः कोऽयं क्रमगलितवेद्यान्तरमतिर्मनोऽवस्था ज्ञातं ननु गदसि निद्रान्तरमिति । 1621 ।। अत्र रौद्ररसस्वरूपविवेचनाय रसास्वादावस्थालक्षणैर्गूढार्थपद- पर्यायैर्नटसूत्रधारयोः सँल्लापादिदमुद्धात्यकम् ।
गूढ़ार्थपदपर्याय से उद्घात्यक जैसे वीरभद्रविजृम्भणनामक डिम में
हे मित्र! बताओ यह रौद्र क्या है ? यह सम्मानित कोई रस है । यह रस नाम की क्या (वस्तु) है ? स्मृति (याद) से मनोहर आस्वादन की महिमा है। यह समास्वाद क्या है? क्रमगलित मति की अवस्था है। अब मैं समझ गया कि मन की अवस्था क्या है यह पूछने पर कहोगे - निद्रा की अवस्था (मन की अवस्था है ) । 1621 ।।
यहाँ रौद्र के स्वरूप विवेचन के लिए रसास्वाद की अवस्था के लक्षण वाले गूढार्थं - पद पर्याय से नट और सूत्रधार का यह वार्तालाप उद्घात्यक है।