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रसार्णवसुधाकरः
प्रश्नोत्तरक्रमाद् यथा तत्रैव डिमे
सेव्यं किं परमुत्तमस्य चरितं लोकोत्तरः कः पुमान् श्रीशिंगः स तु कीदृशो वद निधिर्धर्मस्य धर्मस्तु कः । सत्योक्तिर्वचनं तु किं कविनुतं को नाम तादृक् कविविश्वेशः स तु कीदृशो विजयते विश्वेषु विश्वेशवत् ।।622।।
अत्र गूढार्थपदपर्यायरहितप्रश्नोत्तरक्रमेण नटसूत्रधारयोः सल्लापात् प्रकृतकविवर्णनोपयुक्तमिदमुद्यात्यकम् ।
प्रश्नोत्तर क्रम से उद्घात्यक जैसे वही (वीरभद्रजृम्भण नामक) डिम में
(प्रश्न) सेवनीय (आचरण करने योग्य) क्या है? (उत्तर) उत्तम (लोगों) का लोकोत्तर (परम) चरित्र। (प्रश्न) कौन व्यक्ति लोकोत्तर है? (उत्तर) श्रीशिङ्ग। (प्रश्न) बताओ वे कैसे हैं? (उत्तर) धर्म की निधि हैं? (प्रश्न) धर्म क्या है? (उत्तर) सत्योक्ति वचन। (प्रश्न) सत्योक्ति वचन क्या है। (उत्तर) कवियों द्वारा कहा गया वचन। (प्रश्न) वैसा कवि कौन है।(उत्तर) विश्वेश (शङ्कर)। (प्रश्न) विश्वेश कैसे हैं? (उत्तर) जो विश्व पर विश्वेश के समान विजयी होता है।।622।।
यहाँ गढ़ार्थ- पद पर्याय से रहित प्रश्नोत्तरक्रम से नट और सूत्रधार के संलाप के कारण प्रकृत कवि की वर्णना के लिए उपयुक्त उद्घात्यक है।
अथावलगितम्
द्विधावलगितं प्रोक्तमर्थावलगनात्मकम् ।
अन्यप्रसङ्गादन्यस्य संसिद्धिः प्रकृतस्य वा ।।१७३।।
(२) अवलगित- (एक ही क्रिया के द्वारा) एक (अन्य कार्य), के प्रसङ्ग से (विवक्षित) प्रयोजन वाले अन्य (कार्य) या मूल (कार्य) की सिद्धि अवलगित कहलाती है। अवलगनात्मक अवलगित दो प्रकार का कहा गया है- (१) अन्य प्रसङ्गों से अन्य की तथा (२) अन्य प्रसङ्ग से मूल की सिद्धि।
अन्यप्रसादन्यस्य सिद्ध्यावलगितं यथाभिरामरायवे अनपोतनायकीयेअन्य प्रसङ्ग से अन्य की सिद्धि जैसे अभिरामराघव के अनपोतनायकीय
में
हन्त सारस्वतं चक्षुः कवीनां क्रान्तदर्शिनाम् ।
अतिशय्य प्रवर्तेत नियतार्थेषु वस्तुषु ।।623 ।।
अत्र सूत्रधारेण कवीनां सारस्वतं चारिति कविसामान्यवर्णनन स्वाभिलषितकवि. विशेषोत्कर्षसंसाधनलपात् प्रकृताविलगनादवगलितमिदम्।