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तृतीयो विलासः
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[४०३॥
(अथ सभ्याः )
सभ्यास्तु विबुधैया ये दिदक्षान्विता जनाः ।।१५१।।
तेऽपि द्विधा प्रार्थनीयाः प्रार्थका इति च स्फुटम् । सभ्य
जो (नाटक) देखने की इच्छा वाले व्यक्ति होते हैं उन्हें आचायों ने सभ्य कहा है। वे भी दो प्रकार के होते हैं- (१) प्रार्थनीय और (२) प्रार्थक।।१५१-१५०पू.॥
(तत्र प्रार्थनीया)
इदं प्रयोक्ष्ये युष्माभिरनुज्ञा दीयतामिति ।।१५२।।
सम्प्रार्थ्याः सूत्रधारेण प्रार्थनीया इति स्मृताः ।
(१) प्रार्थनीय- वे सभ्य प्रार्थनीय सभ्य कहलाते हैं जिससे सूत्रधार प्रार्थना करता है कि आप लोग आदेश दीजिए कि मैं (नाटक का) प्रयोग करूँ॥१५२उ.-१५३पू.।।
(अथ प्रार्थकाः)
त्वया प्रयोगः क्रियतामित्युत्कष्ठितचेतसः ।।१५३।।
ये सूत्रिणं प्रार्थयन्ते ते सध्या प्रार्थकाः स्मृताः ।
(२) प्रार्थक- प्रार्थक सभ्य वे कहलाते हैं जो सूत्रधार से उत्कण्ठित चित्त होकर प्रार्थना करते हैं कि आप (नाटक का) प्रयोग कीजिए॥१५३उ.-१५४पू.।।
(अथ नटाः)
रनोपजीविनः प्रोक्ता नटास्तेऽपि त्रिधा स्मृताः ।।१५४।।
वादका गायकाचैव नर्तकाशेति कोविदः ।
नट-रङ्गशाला के आश्रय से जीविकोपार्जन करने वाले नट कहलाते हैं, वे प्राज्ञों द्वारा तीन प्रकार के कहे गये हैं। (१) वादक (२) गायक और (३) नर्तक ॥१५४उ.-१५५पू.।।
(तत्र वादकाः)
वीणावेणुमृदङ्गादिवादका वादकाः स्मृताः ।।१५५।। वादक- वीणा, वेणु (बाँसुरी), मृदङ्ग आदि के बजाने वाले वादक कहलाते हैं।।१५५उ.॥ (अथ गायकाः)
आलापनसुवागीतगायका गायका मताः । गायक- आलाप- सहित ध्रुपद इत्यादि गीत गाने वाले गायक कहलाते हैं।।१५६पू.॥ (अथ नर्तकाः )
नाना प्रकाराभिनयकर्तारो नर्तकाः स्मृताः ।।१५६।।
रसा.२९