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तृतीयो विलासः
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अत्र बहूपायसामर्थ्याभावकथनाद् विचारविपर्ययः स्पष्ट एव। जैसे (उत्तररामचरित ३/४५ में)
हे प्रिये! जिस स्थान में मेरी सुग्रीव के साथ की गयी मित्रता भी व्यर्थ है, बन्दरों का पराक्रम भी निरर्थक है, जाम्बवान् की बुद्धि भी समर्थ नहीं है, हनुमान् की भी गति नहीं है, जहाँ पर विश्वकर्मा के पुत्र नल भी मार्ग (पुल) बनाने में समर्थ नहीं हैं, कि बहुना मेरे भाई लक्ष्मण के भी बाणों से अगम्य ऐसे किस स्थान में तुम विद्यमान हो।।587।।
यहाँ अनेक उपाय के सामर्थ्य के अभाव का कथन होने से तद्विपर्यय है। अथ गुणातिपात:
गुणातिपातमन्यत्र गुणाख्यानमुदाहृतम् । (२०) गुणातिपात- गुणों का आख्यान (प्रचार) करना गुणतिपात कहलाता है।।११४पू.।। यथा वेणीसंहारे (५/३६)(ततः प्रविशतौभीमार्जुनौ) भीमः- अलमलमाशङ्कया
कर्ता द्यूतच्छलानां जतुमयशरणोद्दीपनः सोऽभिमानी कृष्णाकेशोत्तरीयव्यपनयनपरः पाण्डवा यस्य दासाः । राजा दुशासनादेर्गुरुरनुजशतस्याङ्गराजस्य मित्रं
क्वास्ते दुर्योधनोऽसौ कथयत न रुषा द्रष्टुमभ्यागतौ स्वः ।।588 ।। अत्र अधिक्षेपवाक्यत्वाव्यत्यस्तगुणाख्यानं स्पष्टमेव । जैसे (वेणीसंहार ५/२६ में)(तत्पश्चात् भीम और अर्जुन प्रवेश करते हैं) भीम- अरे, अरे, शङ्का करना व्यर्थ है
द्यूत-कपटों का कर्ता, लाह- निर्मित भवन को जलाने वाला, द्रौपदी के केश तथा सिर एवं वक्षस्थल को ढकने वाले वस्त्र को दूर हटाने में वायु तुल्य, घमण्डी, पाण्डव लोग जिसके दास हैं, दुःशासन आदि सौ भाईयों के समूह में श्रेष्ठ, कर्ण का मित्र, राज्य का अधिपति वह दुर्योधन कहाँ है? (तुम लोग) बतलाओ, क्रोध से नहीं, (अपितु) दर्शन करने के लिए (हम दोनों) आये हुए हैं।।588 ।।
यहाँ अधिक्षेप वाक्यों द्वारा गुणों का आख्यान (प्रकटन) स्पष्ट है। अथातिशयः
बहून् गुणान् कीर्तयित्वा सामान्यजनसंश्रितान् ।।११४।।
विशेषः कीयते यत्र ज्ञेयः सोऽतिशयो बुधैः।
(२१) अतिशय- जिसमें सामान्य लोगों के आश्रित अनेक गुणों को कह कर विशेषरूप से कहा जाता है उसे आचार्यों ने अतिशय कहा है॥११५उ.-११६पू.॥