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रसार्णवसुधाकरः
इत्यत्र महामांसविक्रयस्य साहसस्य दोषरूपेण कथनेऽपि माधवानुरागोत्पादनं गुणतया पर्यवसितम्। इदं गुणगर्हणत्वाद् गर्हणम् ।
जैसे मालतीमाधव में (६/५ पद्य से पूर्व)
लवङ्गिका- हे भगवति! कृष्णपक्ष की रात में श्मसान में जाकर अध्यवसाय करने वाले और प्रचण्ड पाखण्डी अघोरघण्ट के साहस को समाप्त करने वाले ये (माधव) साहसिक पुरुष हैं। इस कारण से-प्रिय सखी (मालती) कम्पित हुई है। मकरन्द- (अपने मन में) ठीक है लवङ्गिके ठीक है। कामन्दकी- तुमने उचित समय में गुरुतर अनुराग और उपकार का उपस्थापन किया है।
यहाँ मांस-विक्रय के साहस का दोष के रूप में कथन होने पर भी माधव के प्रति अनुराग की उत्पत्ति के गुण के कारण मुख्य गर्हणीयता से यह पर्यवसित हो गया ।
गुणसङ्कीर्तनैन दोषपर्यवसानं यथा मालतीमाधवे (सप्तमाङ्के उपक्रमे)
'मदयन्तिका- (तथा कृत्वा) दुम्मणा अदि इ वामसीला। (दुर्मनायते वा इयं वामशीला)।
__ लवङ्गिका- कहं गाम णवबहूविस्सम्मणोवअजाणलडहं विअहमहुरभासणं अरोसणं अकादरं दे भादरं भत्तारं समासादिअ ण दुम्मणाइस्सदि मे पिअसही। (कर्ष नाम नववधूवित्रम्भणोपायभिज्ञं लडहं विदग्धं मधुरभा-षणमरोषणं अकातरं ते प्रातरं भरिमासाधन दुर्मनायिष्यते मे प्रियसखी) मदयन्तिका- पेक्ख बुद्धरक्खिदे! विप्पदीवो उवालम्भीआमो। (प्रेक्ष्य बुद्धिरक्षिते! विप्रतीपमुपालभ्यामहे।)
इत्यत्र प्रमुखतो गणुकीर्तनमप्यन्ततो दोषायेति गर्हणमिदम्। गुण के कीर्तन और दोष का पर्यवसान होने पर जैसे (मालतीमाधव में)
लवनिका- नववधू के विश्वास की उत्पत्ति के उपायों को जान कर सुन्दर, निपुण, मधुरभाषी और क्रोध न करने वाले आप के भाई को पति पाकर मेरी प्रिय सखी क्या दुखित मन वाली नहीं होगी। मदयन्तिका- देखो बुद्धिरक्षिते! इन्होंने हमें विपरीत रूप से उलाहना दिया है।
यहाँ मुख्य रूप से गुणर्कीतन भी दोष के लिए है, अत: गर्हण है। अथानुनयःअभ्यर्थनापरं वाक्यं विज्ञेयोऽनुनयो बुधैः। (२५) अनुनय- प्रार्थना- युक्त वाक्य अनुनय कहलाता है।।११९पू.।। यथा वेणीसंहारे (५.४१)धृतराष्ट्र:- सञ्जय! मवचनाद् ब्रूहि भारद्वाजमश्वत्थामानम्
स्मरति न भवान पीतं स्तन्यं चिराय सहामना