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तृतीयो विलासः
[३७१]
अनुक्तसिद्धिः सारूप्यं माला मधुरभाषणम् ।।१०।।
पृच्छोपदिष्टदृष्टानि षट्त्रिंशद्भषणानि हि ।।
छत्तीस भूषण- छत्तीस भूषण ये हैं- (१) भूषण (२) अक्षरसंघात (३) हेत (४) प्राप्ति (५) उदाहृति (६) शोभा (७) संशय (८) दृष्टान्त (९) अभिप्राय (१०) निदर्शन (११) सिद्धि (१२) प्रसिद्धि (१३) दाक्षिण्य (१४) अर्थापत्ति (१५) विशेषण (१६) पदोच्चय (१७) तुल्यतर्क (१८) विचार (१९) विचार- विपर्यय (२०) गुणातिपात (२१) अतिशय (२२) निरुक्त (२३) गुणकीर्तन (२४) गर्हणा (२५) अनुनय (२६) भ्रंश (२७) लेश (२८) क्षोभ (२९) मनोरथ (३०) अनुक्तसिद्धि (३१) सारूप्य (३२) माला (३३) मधुर- भाषण (३४) पृच्छा (३५) उपदिष्ट (३६) दृष्ट।। ९७उ.-१०१पू.॥
तत्र भूषणम्
गुणालङ्कारबहुलं भाषणं भूषण मतम् ।।१०१।।
(१) भूषण- (श्लेषादि) गुण और (उपमादि) अलङ्कार की अधिकता वाला कथन भूषण कहलाता है।।१०१उ.।।
यथा रामानन्दे
खं वस्ते कलविङ्ककण्ठमलिनं कादम्बिनीकम्बलं चर्चा वर्णयतीव दर्दुरकुलं कोलाहलैरुन्मदम् ।। गन्धं मुञ्चति सिक्तलाजसुरभिर्वषेण सिक्ता स्थली
दुर्लक्षोऽपि विभाव्यते कमलिनीहासेन भासां पतिः ।।573 ।।
अत्र श्लेषप्रसादसमाधिसमतादीनां गुणानामुपमारूपकोत्प्रेक्षाहेतूनामलङ्काराणां च सम्भवादिदं भूषणम्।
जैसे रामानन्द में
सूखे कण्ठ वाले पक्षी आकाश से बादल के जल की याचना करते हैं, उन्मत्त मेढ़कों का समूह कोलाहलों से मानों स्वर की आवृत्ति कररहा है, गीले धान की सुगन्ध (अपनी) गन्ध को फैला रही है, वर्षा से (शुष्क) भूमि गीली हो गयी है, (बादलों के कारण) न दिखायी देता हुआ भी सूर्य कमल के खिलने के का करण प्रकट हुआ (उदित हुआ) प्रतीत होता है।।573 ।।
यहाँ श्लेष, प्रसाद, समाधि, समता आदि गुणों और उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा और हेतु अलङ्कारों के होने के कारण यह भूषण है।
अथाक्षरसवातः
वाक्यमक्षरसातो भिन्नार्थ श्लिष्टवर्णकम् ।
(२) अक्षरसङ्घात- भिन्न-भित्र अर्थ वाले श्लिष्ट वर्णों वाला कथन अक्षरसङ्घात कहलाता है।।१०२पू.॥ रसा.२०