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तृतीयो विलासः
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'राजा-(विभाव्य) सखे! भूर्जपत्रगतोऽयमक्षरविन्यासः।' इत्यारभ्य 'अयं प्रियायाः स्वहस्तलेख' इत्यत्रोर्वशीप्रहितपत्रिकाओं लेखः।
जैसे विक्रमोर्वशीय में (२/११ पद्य से बाद)
"राजा- (देख कर) हे मित्र! साँप की केंचुल नहीं हैं। भोजपत्र पर लिखा हुआ अक्षर विन्यास है" यहाँ लेकर "यह प्रिया के अपने हाथों से लिखा गया लेख है' तक उर्वशी द्वारा प्रेषित पत्रिका वाला लेख है।
अथ मदः
मदस्तु मद्यजः (२०)मद- मद मदिरा- पान से उत्पन्न होता है।। यथा मालविकाग्निमित्रे (३.१२ पद्यादनन्तरम्(“ततः प्रविशति युक्तामदा इरावती चेटी चा")
इत्यत्रेरावतीमदः । जैसे मालविकाग्निमित्र में (३/१२ से बाद )(तत्पश्चात् मदयुक्त इरावती और चेटी प्रवेश करती हैं) यहाँ इरावती का मद है। . अथ चित्रम्
चित्रं त्वाकारस्य विलेखनम् । (21) चित्र- आकार (स्वरूप) का विलेखन चित्र कहलाता है। यथाभिज्ञानशाकुन्तले (६/१३ पद्यादन्तरम्)
"राजा-प्रिये सखे! अकारणपरित्यागानुशयतप्तहृदयस्तावदनुकम्प्यातामयं जनः पुनदर्शनेन। इत्यारम्य,
दर्शनसुखमनुभवतः साक्षादिव तन्मयेन हृदयेन ।
स्मृतिकारिणा त्वया में पुनरपि चित्रीकृता कान्ता ।।(6.21)572।। इत्यन्तेन चित्रं स्फुटम्। जैसे अभिज्ञानशाकुन्तल में (१६/१३ पद्य से बाद में)
"राजा- हे प्रिये! विना कारण (तुम शकुन्तला के) परित्याग के कारण पश्चाताप से सन्तप्त हृदय वाले इस व्यक्ति (मुझ दुष्यन्त) को फिर से दर्शन देकर अनुगृहीत करो।"
यहाँ से लेकरराजा"तन्मय हृदय से मानो साक्षात् दर्शन के सुख का अनुभव करने वाले मुझको, “यह