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द्वितीयो विलासः
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समान रूप वाले भावों की सन्धि जैसे
अनपोतशिङ्ग (नामक राजा) के खड्ग के प्रहार से पृथिवी पर गिरे हुए और प्रियाओं की गोद में रखे गये अङ्गों वाले शत्रुओं की आँखें बन्द होने लगती हैं।।३६५।।
यहाँ नायक के खड्गप्रहार और प्रियाओं के अङ्गों के स्पर्श से होने वाली प्रतिनायकों में मूर्छा की सन्धि आँखे बन्द होने से व्यञ्जित हो रही है।
असरूपयोः सन्धिर्यथा
श्रीशिङ्गभूपप्रतिनायकानां स्विद्यन्ति गात्राण्यतिवेपितानि ।
तत्तूर्यसंवादिषु गर्जितेषु प्रियाभिरालम्बितकन्धराभ्याम् ।।366।।
अत्र गर्जितेषु नायकसन्नाहनिस्साणशङ्कयाकरितस्य प्रतिनायकानां त्रासस्य प्रियालिङ्गनतरङ्गितस्य हर्षस्य च स्वेदवेपथुसादृश्यकल्पितसंश्लेषः सन्धिः।
असरूप भावों की सन्धि जैसे (शिङ्गभूपाल का ही)
श्रीशिङ्गभूपाल के प्रतिनायकों (शत्रुओं) के अत्यधिक काँपते हुए अड्ग उस (शिङ्गभूपाल) के तुरही की ध्वनि की गर्जना होने पर प्रियाओं द्वारा आश्रय लिये गये, दोनों कन्धों से (निकलने वाले) पसीने के कारण भीग जाते हैं।।366।।
यहाँ गर्जना होने पर नायक के अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होने की शङ्का से अङ्करित प्रतिनायकों का भय और प्रिया के आलिङ्गन से छलकते हुए हर्ष स्वेद और कम्प का सादृश्य कल्पित-संश्लेष सन्धि है।
अत्यारूढस्य भावस्य विलयः शान्तिरुच्यते । शान्ति- अत्यधिक उठे हुए भाव का विलीन हो जाना शान्ति कहलाता है।।१०२पू.।। यथा
शुद्धान्तस्य निवारितोऽप्यनुनयैर्निश्शङ्कमङ्कुरितो वृद्धामात्यहितोपदेशवचनै रुद्धोऽपि वृद्धिं गतः । मानोद्रेकतरुः प्रतिक्षितिभुजामामूलमुन्मूल्यते
वाहिन्यामनपोतशिङ्गनृपतेरालोकितायामपि ।।367।। जैसे
अन्तःपुर की रानियों के विनय के द्वारा निषेध करने पर भी निशङ्क होकर अङ्कुरित तथा वृद्धों और मन्त्रियों के हितोपदेश वचनों से रोके जाने पर भी वृद्धि को प्राप्त प्रतिपक्षी राजाओं का मान रूपी वृक्ष, अनपोत (नामक) शिङ्गराजा की सेनाओं को देखने पर जड़ से उखड़ जाता है।।367।।
अत्र हितोपदेशानादराधिरूढस्य प्रतिनायकस्यगतगर्वस्य शान्तिरामूलमुन्मूल्यत