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द्वितीयो विलासः
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पश्यन् निशाचरमुखानि ततोऽवतीर्णः
सौधात् प्लवङ्गपतिमुष्टिहतो दशास्यः ।।405।।
अत्र सुग्रीवसम्पातेः पलायितेषु भृत्येषु रावणस्य क्रोधो मूर्धधूननादिभिरनुभावैर्व्यज्यते।
भृत्यविषयक क्रोध जैसे वीरानन्द में
अपने धूने जाते हुए दश शिरों, चञ्चल अङ्गलियों, रूखी आँखों, कठोर हुंकार से भरे हुए कण्ठ और अन्य निशाचरों के मुखों देखता हुआ पुनः अट्टालिका से उतरा हुआ रावण वानरराज (सुग्रीव) को मुष्टिका से मारा ।।405 ।।
यहाँ सेवकों के भाग जाने पर सुग्रीव और सम्पति के प्रति रावण का क्रोध 'शिर के धूनने, इत्यादि अनुभावों द्वारा व्यञ्जित होता है।
मित्रक्रोधे विकाराः स्युर्नेत्रान्तस्खलदश्रुता । तूष्णीध्यानं च नैश्चैष्ट्यं श्वसितानि मुहुर्मुहुः ।।१३३।
मौनं विनम्रमुखता भुग्नदृष्ट्यादयोऽपि च ।
मित्रविषयक क्रोध में चेष्टाएँ- मित्र-विषयक क्रोध में नेत्रों के कोनों से आँसू गिरना, मौनध्यान, निश्चेष्टता, बार-बार लम्बी श्वास लेना, मौन रहना, विनम्र मुख होना, दृष्टि टेढ़ा करना इत्यादि विकार होते हैं।।१३३-१३४पू.।।
यथा ममैव
सुभद्रायाः श्रुत्वा तदनुमतिमत् तेन हरणं कृतं कौन्तेयेन क्षुभितमनसः स्तब्धवपुषः । नमद्वक्त्रा स्वान्ते किमपि विलिखन्तोऽतिकुटिलै
रपश्यन्त्रद्वाष्पैर्यदुपतिमपाङ्गैर्यभटाः ||406।।
अत्र सुभद्राहरणानुमत्या जनितः कृष्णविषयो यदूनां क्रोधः कुटिलवीक्षणादिभिर्व्यज्यते।
मित्रविषयक क्रोध जैसे शिङ्गभूपाल का ही- .
उस अर्जुन के द्वारा उस (कृष्ण) की अनुमति से किये गये सुभद्रा के हरण को सुनकर आन्दोलित मन वाले, जड़ीभूत शरीर वाले, झुके हुए मुख वाले अपने मन में कुरेदते हुए यादव वीर कृष्ण को आँसू निकलते हुए अत्यन्त कुटिल दृष्टि से देखा।।406 ।।
___यहाँ सुभद्रा के हरण की अनुमति के कारण उत्पन्न कृष्णविषयक यादवों का क्रोध कुटिलतापूर्वक देखने इत्यादि से व्यञ्जित होता है।
पूज्यक्रोधे तु चेष्टा स्युःस्वनिन्दा नम्रवक्रता ।।१३४।। अनुत्तरप्रदानाङ्गस्वेदगद्गदिकादय