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द्वितीयो विलासः
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विस्तार, क्षोभ और विक्षेपात्मकता से युक्त होने के कारण विभिन्नता को प्राप्त तथा रति उत्साह इत्यादि) स्वरूप से सामाजिकों को आस्वाद्यमान होता हुआ परमानन्दता को प्राप्त करते हैं। तथा सभी सहृदयों के हृदय को संवेदन शील बनाने वाले इसका अन्य प्रमाणों से सिद्ध करने के परिश्रम के बल श्रोता लोगों के मन संक्षोभित करने के लिए है, उपयोग के लिए नहीं। इसलिए मैं प्रकृत रूप का ही अनुसरण करता हूँ।
अष्टधा स च शृङ्गारहास्यवीराद्भुता अपि ।।१६६।।
रौद्रः करुणबीभत्सौ भयानक इतीरितः ।
रस के प्रकार- और वह (रस) आठ प्रकार का कहा गया है-१. शृङ्गार २. हास्य ३. वीर ४. अद्भुत ५. रौद्र ६. करुण ७. बीभत्स और ८. भयानक ॥१६६-१६७पू.।।
__एषूत्तरस्तु पूर्वस्मात्सम्भूतो विषमात् समः ।।१६७।।
विषम से सम संख्यक रस की उत्पत्ति- इन (रसों) में उत्तरवर्ती सम संख्यक रस पूर्ववर्ती विषम संख्यक रस से उत्पन्न होता है।।१६७उ.।।
बहुवक्तव्यताहेतोः सकलाहलादनादपि ।
रसेषु तत्र शृङ्गारः प्रथमं लक्ष्यते स्फुटम् ।।१६८।।
शृंगार रस के प्रथम निरूपण का कारण- उन रसों में अनेक प्रकार से वक्तव्य होने के कारण सभी लोगों के लिए आह्लादित करने वाला होने के कारण भी शृङ्गार रस का सर्वप्रथम लक्षण किया जा रहा है।।१६८॥
विभावैरनुभावैश्च सात्त्विकैर्व्यभिचारिभिः ।
नीता सदस्यरस्यत्वं रतिः शृङ्गार उच्यते ।।१६९।।
१. शृङ्गार रस- अपने अनुकूल विभावों, अनुभावों, सात्त्विक तथा व्यभिचारिभावों द्वारा सभा के लोगों (दर्शकों) में रसता को प्राप्त रति (नामक स्थायीभाव ) शृङ्गार (रस) कहलाता है।।१६९॥
स विप्रलम्भः सम्भोग इति द्वेधा निगद्यते ।
शृङ्गार के भेद- वह (शृङ्गार रस) दो प्रकार का कहा गया है- (१) विप्रलम्भ और (२) सम्भोग।।१७०पू.॥
अयुक्तयोस्तरुणयोर्योऽनुरागः परस्परम् ।।१७०।। अभीष्टालिङ्गनादीनामनवाप्तौ प्रकृष्यते । स विप्रलम्भो विज्ञेयः स चतुर्धानिगद्यते ।।१७१।।
पूर्वानुरागमानौ च प्रवासकरुणावति । १. विप्रलम्भ शृङ्गार- पहले कभी न मिले हुए या मिलकर वियुक्त दो तरुणों