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तृतीयो विलासः
[३०९]
उद्भेदभेदकरणमिति द्वादशधोदिताः ।
(१) मुख सन्धि- जो बीज से उत्पन्न तथा अनेक प्रकार के प्रयोजनों और रसों का कारण होती है वह मुख सन्धि कहलाती है।
मुखसन्धि के अङ्ग- बीज और आरम्भ से मेल के कारण इस सन्धि के (१) उपक्षेप, (२) परिकर, (३) परिन्यास, (४) विलोभन, (५) उक्ति, (६) प्राप्ति, (७) समाधान, (८) विधान, (९) परिभावना, (१०) उद्भेद, (११) भेद और (१२) करणये बारह अङ्ग कहे गये हैं।३०-३२पू.)
(उपक्षेपः)
उपक्षेपस्तु बीजस्य सूचना कथ्यते बुधैः ।।३२।। यथा बालरामायणे प्रतिज्ञातपौलस्त्यनामनि प्रथमेडके
(ततः प्रविशति विश्वामित्रशिष्यः) शिष्यः प्रातःसवन एव यजमानं द्रष्टुमिच्छामि इत्युपक्रम्य 'राक्षसरक्षौषधि राममानेतुं सिखाप्रमादयोध्यां गतवता तातविश्वामित्रेण यज्ञोपनिमन्त्रकस्य परमसुहदः प्रोत्रिपक्षत्रियस्य सीरध्वजस्य स्वप्रतिनिधिः प्रोषितोऽस्मि' इत्यन्तेन (१/२३ पचात्पूर्वम्) रावणादिदुष्टराक्षसशिष्टरामलक्ष्मणोत्साहोपबृंहणकविश्वामित्रारम्भरूपस्य बीजस्य सूचनादुपक्षेपः।
(१) उपक्षेप- बीज की सूचना देना (अर्थात् शब्दों द्वारा उनकी उपस्थिति करा देना) ही उपक्षेप कहलाता है।॥३२उ.।।
जैसे बालरामायण के प्रतिज्ञापौलस्य नामक प्रथम अङ्क में
(तत्पश्चात् विश्वामित्र का शिष्य (शुनःशेप) प्रवेश करता है) शिष्य- प्रात:काल (के स्नान) के समय ही यजमान को देखना चाहता हूँ,यहाँ से लेकर “राक्षसों से रक्षा के लिए
औषधिस्वरूप राम को लाने के लिए सिद्धाश्रम से अयोध्या जाते हुए महर्षि विश्वामित्र ने मुझे यज्ञनिमन्त्रण देने वाले श्रोत्रिय क्षत्रिय सीरध्वज के पास अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा है (१.२३ पद्य से पहले),, यहाँ तक रावण इत्यादि दुष्ट राक्षस (को मारने के लिए) सज्जन राम-लक्ष्मण का उत्साह वर्धन करने वाले विश्वामित्र के कथन रूप बीज की सूचना से उपक्षेप है।
अथ परिकरः -
परिक्रिया तु बीजस्य बहुलीकरणं मतम् । (2) परिकर- बीज की वृद्धि करना परिक्रिया (या परिकर) कहलाता है।।33पू.।। यथा तत्रैव (बालरामयणे १.२३)
(प्रविश्य तापसच्छद्मना) राक्षसः - सम्प्रेषितो माल्यवताहमद्य ज्ञातुं प्रवृत्तिं कुशिकात्मजस्य ।