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तृतीयो विलासः
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के द्वारा रामभद्र के अभिषेक को स्वीकार करना और कुबेर के विमान को वापस करना रूप कार्य के दर्शन के कारण पूर्वभाव है।
अथोपसंहारः__धर्मार्थाद्युपगमनादुपसंहारःकृतार्थताकथनम् ।
(13) उपसंहार- धर्म, अर्थ इत्यादि की प्राप्ति की कृतज्ञता ज्ञापित करना उपसंहार कहलाता है।।७५पू.।।
यथा तत्रैव (बालरामायणे)- .
वसिष्ठः- वत्स रामभद्र! किं ते भूय: प्रियमुपकरोमि। रामः- किमत: परं प्रियमस्ति
रुग्णं चाजगवं न चापि कुपितो भर्गः सुरग्रामणी सेतुश्च ग्रथितः प्रसन्नमधुरो दृष्टश्च वारांनिधिः । पौलस्त्यश्चरमः स्थितश्च भगवान् प्रीतःश्रुतीनां कविः
प्राप्तं यानमिदं च याचितवते दत्तं कुबेराय च (10/104)561।। जैसे वहीं (बालरामायण में)
वसिष्ठ- बेटा रामभद्र! फिर तुम्हारा और कौन सा उपकार करूँ। राम- इससे अधिक प्रिय और क्या हो सकता है
आजवगव धनुष को भङ्ग किया, देवश्रेष्ठ शिवजी क्रुद्ध भी नहीं हुए, सेतु भी बाँध दिया तथा समुद्र सौम्य और प्रसन्न ही दिखलायी पड़े, रावण का वध किया तथापि वेद प्रणेता भगवान् ब्रह्मा प्रसन्न ही रहे और इस विमान को प्राप्त किया तथा याचना करने वाले कुबेर को दान भी कर दिया।।(10.104)561 ।।
इत्यत्र रुग्णं चाजगवम् इत्यनेन भूतपतिधनुर्दलनेन सीताधिगमरूपकामप्राप्तेः, पौलस्त्यश्चरमः स्थितः इत्यनेन शरणागतरक्षणेन धर्मप्राप्तेः प्राप्तं यानमिदं चेत्यत्र विमानरत्नलाभेनार्थप्राप्तेश्च न चापि कुपितो भर्गः सुरग्रामणीरित्यादिभिःपदान्तवाक्यैः रामचन्द्रेण स्वकृतार्थताकथनादुपसंहारः।
किञ्च रुग्णं चाजगवं सेतुश्च प्रथित इत्यादिभ्यां युद्धोत्साहसिद्धेः पौलस्त्यश्चरमः स्थितिः इत्यत्र विभीषणस्य पालनेन दयावीरसिद्धः याचितवते दत्तं कुबेराय चेत्यनेन दानवीरसिद्धेश्च रामभद्रेण स्वकृतार्थताकथनाद्वा उपसंहारः।
यहाँ 'आजगवभङ्ग हुआ' इससे राजा जनक के धनुर्भङ्ग से सीता की प्राप्ति रूप कामप्राप्ति, विभीषण चरम स्थान पर स्थित है' इससे शरणागत की रक्षा करने से धर्म प्राप्ति
और — यह यान प्राप्त हुआ" से विमानरत्न की प्राप्ति से अर्थ प्राप्ति का कथन हुआ है। और परशुराम जी क्रोधित नहीं हुए' इत्यादि पदान्त वाक्यों से रामचन्द्र के द्वारा अपने किये गये रसा.२६