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तृतीयो विलासः
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ता अवस्सं सवबन्धणमोक्खो करीअदु ति। एदं सुणिअ देवीए इरावदीए चित्तं रक्खन्तीए राआ किल मोएदित्ति अहं सन्दिट्ठो त्ति ततो जुज्जदित्ति ताए इव्वं संवादिदो अत्थो।' (भणितं मया- दैवचिन्तकैर्विज्ञापिता राजा सोपवर्ग वो नक्षत्रम् तदवश्यं सर्वबन्धमोक्षक्रियताम्। एतत् श्रुत्वा देव्या इरावतीचित्तं रक्षन्त्या राजा किल मोचयतीत्यहं सन्दिष्टः इति। ततो युज्यते इति तयैवं सम्पादितोऽर्थाः।) राजा- (विदूषकं परिष्वज्य) सखे! प्रियो भव।
इत्यत्र विदूषकस्य समुचितोत्तरप्रतिभा प्रत्युत्पन्नमतिः। जैसे मालविकाग्निमित्र में (४/५ पद्य से बाद)
राजा- क्या कहकर तुमने उन दोनों को मुक्त कराया उसने पूछा होगा कि इतने सेवकों के रहते हुए देवी ने आप ही को क्यों भेजा। विदूषक- यह तो पूछा ही था किन्तु मुझ मूर्ख की उस समय प्रत्युत्पन्नबुद्धि हो गयी। राजा- क्या, कहो। विदूषक- मैनें कहा कि ज्योतिषियों ने महाराज से कहा है कि आप के ग्रह अनिष्टकारी हैं अत एव इस समय सभी बन्दियों को मुक्त करा दीजिए। यह सुन कर देवी धारिणी ने इरावती का मन रखने के लिए अपने किसी परिजन को न भेज कर मुझे भेजा है जिससे इरावती यह समझे कि राजा ही मुक्त कर रहे हैं। राजा- (विदूषक के गले मिलकर) हे मित्र! मैं निश्चिय ही तुम्हारा प्रिय हूँ।
यहाँ विदूषक की समुचित उत्तर देने की प्रतिभा प्रत्युत्पन्नमति है। अथ वधः
वधस्तु ज्ञापिता द्रोहक्रिया स्यादाततायिनः ।।८५।। (6) वध- आततायियों की द्रोहक्रिया को ज्ञापित करना वध कहलाता है।।८५उ.।। यथा वेणीसंहारे (६/४४ पद्यादनन्तरम)
वासुदेव:- अहं पुनशावकिण व्यकुलीभूतं भवन्तमुपलभ्यार्जुनन सहत्वरितमागतः। युधिष्ठिरः- किं नाम चार्वाकण रक्षसा वयमेव विप्रलब्धाः। भीमः- (सरोषम्) भगवन्! क्वासौ धार्तराष्ट्रसखश्चार्वाको नाम राक्षसः। येनार्यस्य महानयं चित्तविभ्रमः कृत। वासुदेव:निगृहीतो दुरात्मा कुमारनकुलेन। युधिष्ठरः- प्रियं नः प्रियम्।
इत्यत्र चार्वाकनिग्रहो वधः। जैसे वेणीसंहार (६/४४ पद्य से बाद)
वासुदेव- मैं तो आपको चार्वाक द्वारा ठगा गया सुन कर अर्जुन के साथ अतिशीघ्र आ गया हूँ। युधिष्ठिर- क्या चार्वाक राक्षस द्वारा हम लोग इस प्रकार ठगे गये हैं। भीमसेन- (क्रोधपूर्वक) कहाँ है वह धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन का मित्र अधम चार्वाक राक्षस जिसने आर्य (आप) को महान् बुद्धि- व्यामोह पैदा किया है। वासुदेव- नकुल के द्वारा वह दुरात्मा पकड़ लिया गया है। युधिष्ठिर- प्रिय है हमारा प्रिय है।
यहाँ चार्वाक का निग्रह-वध है।