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रसार्णवसुधाकरः
यहाँ से लेकर "दशरथ- बेटा रामभद्र! मालूम पड़ता है कि मलयाचल के निवासी मेरे प्रियमित्र जटायु के भी स्वामी होवोगे' (६/५५ पद्य से बाद) तक कौसल्या दशरथ इत्यादि लोगों का रामप्रवास-विषयक शङ्का और भय के अनुवर्तन के कथन के कारण सम्भ्रम है।
अथाक्षेपः___ गर्भबीजसमाक्षेपमाक्षेपं परिचक्षते । (12) आक्षेप- गर्भस्थ बीज का समाक्षेप (उद्भेदन) आक्षेप कहलाता है।।५४पू.॥ यथा तत्रैवबालरामायणे) पञ्चमाङ्के (५/७४ पद्यादनन्तरम्)
(प्रविश्यापटीक्षेपेण छिन्ननासा कृतावगुण्ठना) शूर्पणखा-(साक्रन्दं पादयोर्निपत्य)अज्ज एक्कमादुअ पेक्ख तक्खअचूडामणी उप्पाडिदो। बडबाणलजालाकलापअंधुतलिदं। दसकण्ठकणि?बहिणिए अच्चाहिदं (आर्य एकमातृक प्रेक्षस्व तक्षकचूडामणिरुत्पाटितः। बडवानलज्वालाकलापकं चूर्णितम्। दशकण्ठकनिष्ठभगिन्याः अत्याहितम् ।" इत्युपक्रम्य, "रावणः-(प्रकाशम्) ततः किं तस्याः। शूर्पणखा- सापि लङ्केस्सरस्स समुचिदत्ति अवहरंती तेहिं कावालिअव्वजोग्गा किदंहि। (सापि लङ्केश्वरस्य समुचितेति व्यवहरन्ती ताभ्यां कापालिकव्रतयोग्या कृतास्मि)" इत्यन्तेन अङ्कान्तगतभागेन सकलदेवतातेज तिरस्करणरावणातिशयवर्णनागीकृतस्य रामोत्साहस्य शूर्पणखा कर्णनासानिकृन्तनरूपेण समुद्भेदादाक्षेपः।
जैसे वहीं ( बालरामायण के) पञ्चम अङ्क (५/७४ पद्य से बाद )में
"(पटाक्षेप से प्रवेश करके कटी नाक वाली पूँघट काढ़े शूर्पणखा पैरों पर गिर कर) शूर्पणखा- हे एक माता वाले (सगे भाई) आर्य (रावण)! देखो, तक्षक का चूड़ामणि उखाड़ लिया गया। बड़वानल का ज्वाला- समूह चूर्णित कर दिया गया। रावण की बहन का अत्यधिक अहित हो गया"। यहाँ से लेकर "रावण ( प्रकट रूप से) तो उसका क्या? शूपर्णखा- यह लङ्केश्वर (रावण) के लिए उचित ही है। (सोचकर) हरण करती हुई कपालिक के योग्य बना दी गयी हूँ।" अङ्क के अंन्तिम भाग यहाँ तक सभी देवताओं के तेज-तिरस्कार करने वाले रावण की अतिशय का वर्णन होने से गर्भस्य (बीज) रूप राम के उत्साह के शूर्पणखा के कान-नाक काटने रूपी उद्भेदन के कारण आक्षेप है।
अथ विमर्शसन्धिः
अत्र प्रलोभनक्रोधव्यसनाद्यैर्विमृश्यते ।। ५७।।
बीजार्थो गर्भनिर्मिन्नः सोऽवमर्श इतीर्यते ।
(४) विमर्श (अवमर्श) सन्धि- जहाँ प्रलोभन, क्रोध, व्यसन इत्यादि से (फलप्राप्ति के विषय में) गर्भसन्धि द्वारा पर्यालोचन किया जाय और प्रस्फुटित बीजार्थ का सम्बन्ध दिखलाया जाय उसे विमर्श (अवमर्श) सन्धि कहा जाता है।।५७उ.५८पू.।।