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तृतीयो विलासः
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इनके लक्षण कहे जा रहे हैं।।६८-६९।।
अथ सन्धिःसन्धिर्बीजोपगमः (1) सन्धि- बीज का उपगम (पुनरान्वेषण)सन्धि कहलाता है। यथा तत्रैव (बालरामायणे) राघवानन्दनामनि दशमाङ्के (आदौ)
"(ततः प्रविशति सशोका लङ्का) लङ्का- हा दुद्धरतवविसेस परितोसिदारविन्दासण तिहुवणेक्कमल्ल दसकण्ठ हा हेलाबन्दीकिदमहिन्द मेहनाद हा समरसंरंभसुप्पसण्ण कुंभकण्ण कहिसि देहि मे पडिवअणं। (हा दुर्धरतपोविशेष परितोषितारविन्दासन त्रिभुवनैकमल्ल दशकण्ठ! हा हेलाबन्दी कृतमहेन्द्र मेघनाद! हा समासंरम्भसुप्रसन्न कुम्भकणी क्वासि देहि मे प्रतिवचनम्" इत्युपक्रम्य "(प्रविश्य सत्वरा)" अलका- सखि धर्मजेतरि विभीषणेऽपि नेतरि तत्रभवती सशोकशङ्करिव। लङ्का- जंतिणेत्तमित्तस्स णअरी भणदी। (यत् त्रिनेत्रमित्रस्य नगरी भणति)" (१०.२पद्यात्पूर्णम्) इत्यन्तन दुष्टराक्षसशिक्षारूपरामोत्सा-हबीजोपगमनात् सन्धिः।।
जैसे वहीं (बालरामायण के) राघवानन्दनामक दशम अङ्क में (प्रारम्भ से)
"(तत्पश्चात् शोक- युक्त लङ्का प्रवेश करती है) लङ्का- हाय! दुश्चर तपस्या से कमलासन (ब्रह्मा) को प्रसन्न करने वाले रावण! हाय, अनायास ही महेन्द्र को बन्दी बनाने वाले मेघनाद! हाय, भीषण-संग्राम में प्रसन्न होने वाले कुम्भकर्ण! कहाँ हो? प्रत्युत्तर दो!" यहाँ से लेकर "अलका- हे सखी! धर्म से विजय प्राप्त करने वाले तथा भयङ्करों को भयभीत करने वाले विभीषण के शासन में आदरणीया आप क्यों चिन्तित हैं। लङ्का- शङ्कर के मित्र (कुबेर) की नगरी जैसा आप कहें" यहाँ तक दुष्ट राक्षस की शिक्षा रूप राम के उत्साह रूपी बीज के पुनरन्वेषण होने से सन्धि है।
अथ विबोधः
कार्यस्यान्वेषणं विबोध स्यात् । (2) विबोध- कार्य (फल) का अन्वेषण विबोध कहलाता है।।१६१पू.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे)"(नेपथ्ये)
रुद्राणि लक्ष्मि वरुणानि सरस्वति द्यौः सावित्रि धात्रि सकलाः कुलदेवताश्च । शुद्ध्यर्थिनी विशति शुष्मणि रामकान्ता तत्सनिधत्त सहसा सह लोकपालैः ।।" (10/20)।।549।।