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तृतीयो विलासः
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“समुद्र लङ्घन से प्रकट सामर्थ्य वाले तथा लङ्का की स्त्रियों द्वारा चकित नेत्रों से देखे गये हनुमान् राज्याभिषेक के अवसर पर उपयुक्त कार्यों के सम्पादन के लिए भरत के पास जा रहे हैं।"(10.16)।।551।।
यहाँ तक राम के राज्याभिषेक रूप परम कार्य के उपसंहार के कारण ग्रथन है। अथ निर्णयः
स्यादनुभूतस्य निर्णयः कथनम् ।।६।। (4) निर्णय- किये गये अनुभव का कथन निर्णय कहलाता है।।६०उ.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे)रामः- (अपवार्य)
अय्यस्मदग्रकरयन्त्रनिपीडितानां धाराम्भसां स्मरसि मज्जनकेलिकाले । सुभ्र त्वया निजकुचाभरणैकयोग्य
मत्राब्जवल्लिदलमावरणाय दत्तम् ।।(10/76)552।। किञ्च
तदिह कलहकेलौ सैकते नर्मदायाः स्मरसि सुतनु किञ्चिन्नौ पराधीनसुप्तम् । उषसि जलसमीरप्रेलणाचार्यकार्य
तदनु मदनमुद्रां तच्च गाढोपगूढम् ।। (10/66)।।553।। इत्यत्र रामेण एवानुभूतार्थकथनान्निर्णयः। जैसे वहीं (बालरामायण में)राम- (छिपाकर)
हे सुन्दर भौंहों वाली (सीता)! यहाँ जलावगाहन की क्रीडा में मेरे कराग्र रूपी यन्त्र से आहत जल की धाराओं को रोकने के लिए तुमने अपने स्तनों के आच्छादन के लिए एक मात्र उपयुक्त कमल के पत्र को रख लिया था।।(10.76)552।।
और भी
हे सुन्दरी! इस नर्मदा के बालुकामय तट पर प्रणय-कलह में वह पराङ्मुख शयन, सजल हवा का स्पन्दन रूपी आचार्यत्व (मान छोड़ों की शिक्षा) तथा उसके बाद काम का आवेश और वह गाढ़ आलिङ्गन क्या याद है। (10.66)553 ।।
यहाँ राम के द्वारा अपने अनुभव किये गये अर्थ का कथन होने से निर्णय है।