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रसार्णवसुधाकरः --
इत्युपक्रम्य " लङ्का - अहो देवदाणं वि सीदापक्खवादो! अथवा सव्वो गुणेसु रज्जदि ण सरीरेसु । (अहो देवानामपि सीतापक्षपातः अथवा सर्वो गुणेषु रज्ज्यति । न शरीरेषु (१०/८ पद्यादनन्तरम् ) इत्यन्तेन सीताशुद्धिरूपकार्यान्वेषणाद् विबोधः । जैसे वहीं (बालरामायण में ) -
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" ( नेपथ्य में)
हे पार्वती ! हे लक्ष्मी ! हे वरुण पत्नी! हे सरस्वती ! हे स्वर्ग देवता ! हे सावित्री ! हे पृथ्वी! तथा हे समस्त कुलदेवियों ! राम की पत्नी सीता आत्मशुद्धि के लिए अग्नि में प्रविष्ट हो रही है अतः आप लोग इन्द्रादि लोकपालों के सहित सभी सावधान हो जाँए । (10/2)। 1549 ।। यहाँ से लेकर "लङ्का - अहा ! देवताओं का भी सीता के प्रति पक्षपात है अथवा सभी लोग गुणों से ही पूज्य होते हैं, शरीर से नहीं।” यहाँ तक सीता- शुद्धि रूप कार्य के अन्वेषण के कारण विबोध है।
अथ ग्रथनम्प्रथनं तदुपक्षेपः
( 3 ) ग्रन्थन - कार्य के उपक्षेप (उपसंहार) को ग्रन्थन कहा जाता है
यथा तत्रैव (बालरामायणे) -
बद्धः सेतुर्लवणजलधौ क्रोधवह्नेः समित्त्वं
नीतः रक्षः कुलमधिगताः शुद्धिमन्तश्च दाराः । तेनेदानीं विपिनवसतावेषपूर्णप्रतिज्ञो
दिष्ट्यायोध्यां व्रजति दयिताप्रीतये पुष्करेण ।। ( 10/15 ) 55011
तद्भोः सकलप्लवङ्गयूथपतयः" इत्यारभ्य
" सम्प्रेषितश्च हनुमान् भरतस्य पार्श्व लङ्काङ्गनाचकितनेत्रनिरीक्षितश्रीः
यात्येष
वारिनिधिलङ्घनदृष्टसारो
I
राज्याभिषेकसमयोचितकार्यसिद्धेः
इत्यन्तेन रामाभिषेकरूपपरमकार्योपक्षेपाद् प्रथनम् ।
जैसे वहीं (बालरामायण में)
इस राम ने लवण समुद्र पर सेतु बाँधा, राक्षस कुल को क्रोधाग्नि की समिधा बनाया तथा अग्नि से शुद्ध की गयी पत्नी को भी प्राप्त किया। अतः सौभाग्य से वनवास की प्रतिज्ञा को पूरा करके प्रेयसी सीता की प्रीति के लिए पुष्पक विमान से अयोध्या को जा रहे हैं। (10.15) ।।550।।
तो हे सभी वानर समूहों के स्वामीगण" यहाँ से लेकर
II(10/16)551.11