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________________ [ ३३६] रसार्णवसुधाकरः यहाँ से लेकर "दशरथ- बेटा रामभद्र! मालूम पड़ता है कि मलयाचल के निवासी मेरे प्रियमित्र जटायु के भी स्वामी होवोगे' (६/५५ पद्य से बाद) तक कौसल्या दशरथ इत्यादि लोगों का रामप्रवास-विषयक शङ्का और भय के अनुवर्तन के कथन के कारण सम्भ्रम है। अथाक्षेपः___ गर्भबीजसमाक्षेपमाक्षेपं परिचक्षते । (12) आक्षेप- गर्भस्थ बीज का समाक्षेप (उद्भेदन) आक्षेप कहलाता है।।५४पू.॥ यथा तत्रैवबालरामायणे) पञ्चमाङ्के (५/७४ पद्यादनन्तरम्) (प्रविश्यापटीक्षेपेण छिन्ननासा कृतावगुण्ठना) शूर्पणखा-(साक्रन्दं पादयोर्निपत्य)अज्ज एक्कमादुअ पेक्ख तक्खअचूडामणी उप्पाडिदो। बडबाणलजालाकलापअंधुतलिदं। दसकण्ठकणि?बहिणिए अच्चाहिदं (आर्य एकमातृक प्रेक्षस्व तक्षकचूडामणिरुत्पाटितः। बडवानलज्वालाकलापकं चूर्णितम्। दशकण्ठकनिष्ठभगिन्याः अत्याहितम् ।" इत्युपक्रम्य, "रावणः-(प्रकाशम्) ततः किं तस्याः। शूर्पणखा- सापि लङ्केस्सरस्स समुचिदत्ति अवहरंती तेहिं कावालिअव्वजोग्गा किदंहि। (सापि लङ्केश्वरस्य समुचितेति व्यवहरन्ती ताभ्यां कापालिकव्रतयोग्या कृतास्मि)" इत्यन्तेन अङ्कान्तगतभागेन सकलदेवतातेज तिरस्करणरावणातिशयवर्णनागीकृतस्य रामोत्साहस्य शूर्पणखा कर्णनासानिकृन्तनरूपेण समुद्भेदादाक्षेपः। जैसे वहीं ( बालरामायण के) पञ्चम अङ्क (५/७४ पद्य से बाद )में "(पटाक्षेप से प्रवेश करके कटी नाक वाली पूँघट काढ़े शूर्पणखा पैरों पर गिर कर) शूर्पणखा- हे एक माता वाले (सगे भाई) आर्य (रावण)! देखो, तक्षक का चूड़ामणि उखाड़ लिया गया। बड़वानल का ज्वाला- समूह चूर्णित कर दिया गया। रावण की बहन का अत्यधिक अहित हो गया"। यहाँ से लेकर "रावण ( प्रकट रूप से) तो उसका क्या? शूपर्णखा- यह लङ्केश्वर (रावण) के लिए उचित ही है। (सोचकर) हरण करती हुई कपालिक के योग्य बना दी गयी हूँ।" अङ्क के अंन्तिम भाग यहाँ तक सभी देवताओं के तेज-तिरस्कार करने वाले रावण की अतिशय का वर्णन होने से गर्भस्य (बीज) रूप राम के उत्साह के शूर्पणखा के कान-नाक काटने रूपी उद्भेदन के कारण आक्षेप है। अथ विमर्शसन्धिः अत्र प्रलोभनक्रोधव्यसनाद्यैर्विमृश्यते ।। ५७।। बीजार्थो गर्भनिर्मिन्नः सोऽवमर्श इतीर्यते । (४) विमर्श (अवमर्श) सन्धि- जहाँ प्रलोभन, क्रोध, व्यसन इत्यादि से (फलप्राप्ति के विषय में) गर्भसन्धि द्वारा पर्यालोचन किया जाय और प्रस्फुटित बीजार्थ का सम्बन्ध दिखलाया जाय उसे विमर्श (अवमर्श) सन्धि कहा जाता है।।५७उ.५८पू.।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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