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________________ तृतीयो विलासः प्रकरीनियताप्त्यानुगुण्यादत्राङ्गकल्पनम् ।।५८।। अपवादोऽथ सम्फेटो विद्रवद्रवशक्तयः । द्युतिप्रसङ्गौ छलनव्यवसायौ निरोधनम् ।। ५९ ।। प्ररोचना विचलनमादानं स्युस्त्रयोदशः । (5) शक्ति, (6) विमर्श सन्धि के अङ्ग - विमर्श सन्धि के प्रकरी, नियताप्ति और आनुगुण्य से उत्पन्न ये तेरह अंग होते हैं- (1) अपवाद, (2) सम्फेट, (3) विद्रव, (4) द्रव, द्युति, ( 7 ) प्रसङ्ग, (8) छलन, (9) व्यवसाय, (10) निरोधन (विरोधन), (12) विचलन और (13) आदान ।।५९उ.-६०पू. ॥ (11) प्ररोचना, तत्रापवाद: - तत्रापवादो दोषाणां प्रख्यापनमितीर्यते । । ६०।। (1) अपवाद- दोष का प्रख्यापन ( अर्थात् किसी पात्र के दोष का प्रचार करना) अपवाद कहलाता है । ६० उ. ॥ [ ३३७ ] यथा तत्रैव (बालरामायणे) अष्टमाङ्के वीरविलासनाम्नि (आदौ ) - " (ततः प्रविशतो राक्षसौ) एकः सखे दुर्मुख! किमपि महान् सत्त्वभ्रंशो दशकण्ठस्य। यत्कुमारसिंहनादवधमाकर्ण्य न शोकः कृतो नाप्यमर्षः" इत्युपक्रम्य त्रिजटा - कहं देवेण दिण्णो लज्जादेवीए जलांजली। (कथं देवेन दत्तो लज्जा-देव्यै जलाञ्जलिः) " (८/१० पद्यादनन्तरम् ) इत्यन्तेन रावणगतदुर्बुद्धिदोष- प्रख्यापनादपवादः । - जैसे वहीं (बालरामायण के) वीरविलास नामक अष्टम अङ्क (आदि में ) - " (तत्पश्चात् दो राक्षस प्रवेश करते हैं) एक- हे मित्र ! दुर्मुख! रावण का कुछ महान् सत्त्वनाश हो गया, जो सिंहनाद के वध को सुन कर भी न तो शोक ही किया और न अमर्ष ही । " यहाँ से लेकर "त्रिजटा आर्य (रावण) ने लज्जा देवी को जलाञ्जलि दे दिया।” (८/१० पद्य के बाद) यहाँ तक रावण के दुर्बुद्धि- दोष के प्रचार के कारण अपवाद है। सम्फेट: दोषसङ्ग्रथितं वाक्यं सम्फेट प्रचक्षते । ( 2 ) सम्फेट - दोष से भरा हुआ कथन सम्फेट कहलाता है ।। ६१ पू. ।। यथा तत्रैव (बालरामायणे) - सुमुखः - (जनान्तिकम्) सखे दुर्मुख! किमपि शोर्यातिरेको रामानुजस्य यदमुना निकुम्भिलां प्रस्थितस्य कुमारमेघनादस्य सन्दिष्टं यत् यावन्नैव निकुम्भिला यजनतः सिद्धे हविर्लेहिनि प्राप्तस्यन्दनबाणचापकवचः स्वयं मन्यसे दुर्जयम् ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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