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________________ [ ३३८ ] वैदेहीविरहव्यथाविधुरितेऽप्यार्थे - विधाय क्रुधो - वन्ध्यास्तावदयं स शक्रविजयिंस्त्वां लक्ष्मणो जेष्यति ।। ( 8.15) 537।। इत्युपक्रम्य" ( नेपथ्ये) रसार्णवसुधाकरः सीताप्रियं च दलितेश्वरकार्मुकञ्च वालिद्रुहं च रचिताम्बुधिबन्धनञ्च । रक्षोहरणं च विजिगीषुविभीषणं च रामं निहत्य चरणौ तव वन्दिताहे ।। (8/41)538।। इत्यन्तेन लक्ष्मणेन्द्रजित्कुम्भकर्णानां रोषवाक्यग्रथनात्सम्फेटः । जैसे वहीं (बालरामायण मे ) - "सुमुख- (जनान्तिक) हे मित्र दुर्मुखः ! रामानुज (लक्ष्मण) का वीर्यातिरेक अत्यन्त अधिक है कि उन्होंने निकुम्भिला को जा रहे मेघनाद को सन्देश दिया कि - हे इन्द्रजेता मेघनाद! जब तक निकुम्भिला में यज्ञ द्वारा अग्नि के सिद्ध होने पर प्राप्त, अपने रथ, धनुष, बाण और कवच को दुर्जय नहीं मान रहे हो, उससे पूर्व ही सीता की विरहव्यथा से व्यि राम में क्रोध व्यर्थ कर तुम्हें लक्ष्मण जीतेगा " 11(8.15)53711 " नेपथ्य में सीता के प्रिय, शिव धनुष को तोड़ने वाले, बालि के शत्रु, समुद्र में सेतु निर्माता, राक्षसों के शत्रु और विजयेच्छुओं के भयकारी राम को मार कर आप के चरणों की वन्दना करूँगा।” ( 8.41 ) ।। 538 ।। यहाँ तक लक्ष्मण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के रोषपूर्ण कथन का ग्रन्थन होने के कारण सम्फेट है । अथ विद्रव: विरोधवधदाहादिर्विद्रवः परिकीर्तितः ।। ६१ ।। (3) विद्रव - विरोध, वध, दाह इत्यादि विद्रव कहलाता है ।। ६१३. ।। यथा तत्रैव (बालरामायणे ८/४८ पद्यादनन्तरम्) - "सुमुख:- देव पदातिलवः सुमुखस्तु मन्यते लक्ष्मणदिघुक्षया कुमारमेघनादेन पावकीयः शरः संहित इति तत् एव भुवनाप्लोषः" इत्युपक्रम्य, " (दक्षिणतः) सुमुख: अयमपरः क्षते क्षरावसेक: आकर्णाकृष्टचापोन्मुखविशिखशिखाशेखरः शूलपाणि -
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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