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________________ तृतीयो विलासः बिभ्राणो भैरवत्वं बहुलकलकलारावरौद्राट्टहासः । ध्यातः सौमित्रिणाथ प्रसरदुरुतरोत्तालवेतालमाल स्तद्वक्त्रादुत्पतद्भिः समजनि शिखिभिर्भस्मादिन्द्रजिच्च ।।(8/85)539।। (रावणः मूर्च्छति सर्वे यथोचितमुपचरन्ति) रावण:- (मूच्छाविच्छेदनटित केन) " इत्यन्तेन कम्पितसेनाविक्षोभसुग्रीवनिरोधकुम्भकर्णवधेन्द्रजिद्भस्मीकरणरावणमूर्च्छादिसङ्कथनाद् विद्रवः । [ ३३९ ] जैसे वहीं (बालरामायण में ८/४८ पद्य से बाद ) "सुमुख- हे महाराज ! कुमार मेघनाद द्वारा लक्ष्मण को जलाने के लिए छोड़ा गया आग्नेयास्त्र सामान्य पैदलों को सरल समझ रहा है, इसी से यह भुवन दाह हो रहा है” यहाँ से लेकर "(दक्षिण की ओर से) सुमुख- यह जले पर दूसरा नमक पड़ा लक्ष्मण ने खींची धनुष पर ऊर्ध्वमुख बाण के अग्रभाग में भौमाकृति शिरोभूषण युक्त; उत्ताल वेताल मालाओं से युक्त शूलपाणि (शङ्कर) का ध्यान किया और उसके मुख से उत्पन्न हो रही अग्नियों से मेघनाद भस्मशात् हो गया । । (8.85)।।539।। (रावण मूर्च्छित हो जाता है सभी यथायोग्य उपचार करते हैं ) ( रावण- मूर्च्छा दूर होने के अभिनय के साथ)" यहाँ तक काँपती हुई सेना के विक्षोभ, सुग्रीव के निरोध, कुम्भकर्ण के वध, मेघनाद के भस्मीकरण, रावण की मूर्च्छा इत्यादि का कथन होने से विद्रव है । अथ द्रव: गुरुव्यतिक्रमं प्राह द्रवं तु भरतो मुनिः । ( 4 ) द्रव - गुरुजनों के व्यतिक्रम (तिरस्कार) को भरतमुनि ने द्रव कहा है ।। ६२५. ।। यथा तत्रैव (बालरामायणे) - करङ्कः धिक् शौण्डीर्यमदोद्धतं भुजवनं धिक् चन्द्रहासं च ते धिक् वक्त्राणि निकृत्तकण्ठवलयप्रीतेन्दुमौलीनि च । प्रतिदिनं स्वापान्महामेदुरे निद्रालावतिघस्मरे प्रत्याशा चिरविस्मृतायुधविधौ यत्कुम्भकर्णे स्थिता ।। (8/14) 540।। इत्यत्र स्वामिनोदशकण्ठकुम्भकर्णयोरनुजीविना राक्षसेन निन्दाकरणाद् द्रवः । जैसे वहीं (बालरामायण में ) - करङ्क तुम्हारी वीर्यमद से उद्धत भुजाओं को धिक्कार है, तुम्हारी चन्द्रहास तलवार को धिक्कार है, काटे गये कण्ठ- मण्डलों से शङ्कर को प्रसन्न करने वाले तुम्हारे मुखों को धिक्कार रसा. २५
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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