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रसार्णवसुधाकरः
से तोटक है।
अथाधिबलम्
बुधैरधिबलं प्रोक्तं कपटेनातिवञ्चनम् ।।५५।।
(१) अधिबल- कपट-पूर्वक आचरण से (दूसरों को) धोखा देना अधिबल कहलाता है।।५५उ.॥
यथा तत्रैव (बालरामायणे) षष्ठाङ्के (६/५ पद्यात्पूर्वम्)
"मायामयः- अथैकदा दयितस्नेहमय्या कैकेय्या सममसुरानीकविजयाय पूरितसुहृन्मनोरथे दशरथे त्रिविष्टप्तिलकभूतं पुरुहूतं प्रभाववति समुपस्थितवति तद्रूपधारिणौ कुवलयाभिरामं रामं सपरिच्छदं छलयितुमयोध्यां शूर्पणखा अहं च प्राप्तवन्तौ" इत्युपक्रम्य "माल्यवान्- किमसाध्यं वैदग्धस्य" (६/८ पद्यादनन्तरम्) इत्यन्तेन मायामयशूर्पणखाभ्यां कपटवेषधारणेन रामवामदेववचनादधिबलम्।
जैसे वहीं (बालरामायण के) षष्ठ अङ्क (६/५ से पूर्व)
"मायमय- एक दिन राक्षससेना के विजय के लिए प्रिय के स्नेह से युक्त मित्र के मनोरथ को पूरा करने वाले प्रभावशाली राजा दशरथ के इन्द्र के पास जाने पर उन दोनों (दशरथ और कैकेयी) के रूप को धारण करने वाले हम दोनों शूर्पणखा और मैं कमलदल के समान अभिराम राम को छलने के लिए अयोध्या में गये।" यहाँ से लेकर "माल्यवान्चतुर के लिए असाध्य क्या है" यहाँ तक मायामय और शूर्पणखा द्वारा कपटवेष धारण कर राम और वामदेव को धोखा देने से अधिबल है।
अथोद्वेगः___शत्रुचोरादिसम्भूतं भयमुद्वेग उच्यते । (10) उद्वेग- शत्रु, चोर इत्यादि से उत्पन्न भय उद्वेग कहलाता है।।५६पू.॥ यथा तत्रैव (बालरामायणे ६/५६ पद्यात्पूर्वम)
(ततः प्रविशति गगनावितरणनाटितकेन रत्नशिखण्डः) रत्नशिखण्ड:स्वस्ति महाराजदशरथाय। दशरथ:- अपि कुशलं वयस्यस्य जटायोः। रत्नशिखण्ड:प्रियसुहृदुपयोगेन- न पुनः शरीरेण। दशरथ:- भद्र! समुपविश्य कथ्यताम् । व्याकुलोऽस्मि" इत्युपपक्रम्य "कौशल्या- हा देव्य तुए किदविडंबं समत्यि वणगदं राहवकुटुंबं (हा देव! त्वया कृतविडम्बं समर्थितं वनगतं राघवकुटुम्बकम्)। सुमित्रा- न केवलं वणगदं भुवणगदं वि (न केवलं वनगतं भुवनगतमपि)। (६/७० पचादनन्तरम्) इत्यन्तेन मातृगतभीतेरुपन्यासाद् उद्वेगः। ..
जैसे वहीं (बालरामायण में ६/५६ पद्य से पूर्व)"(तत्पश्चात् बीच आकाश से उतरने का अभिनय करता हुआ तथा चोट खाया