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रसार्णवसुधाकरः
है क्योंकि आप की आशा निद्रालु, अतिभोजी, अहर्निश सोने से स्थूल और बहुत दिनों से अस्त्रविधि को भूले हुए कुम्भकर्ण पर टिकी है । । ( 8.14)।।540।।
यहाँ सेवक- राक्षसों द्वारा स्वामी दशकण्ठ (रावण) और कुम्भकर्ण की निन्दा करने के कारण द्रव है।
शक्तिः ।
अथ शक्ति:
उत्पन्नस्य विरोधस्य शमनं शक्तिरिष्यते
।।६२।।
( 5 ) शक्ति - उत्पन्न विरोध का शमन करना शक्ति कहलाता है ।। ६२उ. ।। यथा तत्रैव (बालरामायणे) रावणवधनामनि नवमाङ्के (९/४९ पद्यात्पूर्वम्) - "पुरन्दरः- यत्कुलाचलसन्दोहदहनकर्मणि भगवान् कालाग्निरुद्रः " इत्युपक्रम्य " ( नेपथ्ये) -
बाणैर्लाञ्छितकेतुयष्टिशिखरो मूर्च्छानमत्सारथि - मांसास्वादनलुब्धगृधविहगश्रेणीभिरासेवितः रक्षोनाथमहाकबन्धपतनक्षुण्णाक्षदण्डो हयै
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र्हेषित्वा स्मृतमन्दुरास्थितिहृतैर्लङ्का रथो नीयत ।। (9/56)541।। इत्यन्तेन निरवशेषप्रतिनायक भूतरावणकण्ठोत्सादनकथनेन विरोधशमनात्
जैसे वहीं (बालरामायण के) रावणवध नामक नवम अङ्क में (९ / ४९ पद्य से
पूर्व) -
" पुरन्दर- कुलपर्वतों के समूह को जलाने में जो प्रलय कालिक कालाग्निमय भगवान् रुद्र करते हैं" से लेकर
" ( नेपथ्य में)
राम के बाणों से विक्षत ध्वजदण्ड वाला, मूर्छित सारथि वाला, मांस खाने के लोभी गृध पक्षियों से सेवित तथा राक्षसराज रावण के कबन्ध (धड़) के गिरने से नष्ट अक्षदण्ड वाला रावण का रथ अश्वों द्वारा अश्वशाला की यादवश हिंकार करते हुए लङ्का को ले जाया जा रहा है ।। "
यहाँ तक पूर्ण रूप से प्रतिनायक बने रावण के कण्ठ के विनाश के कथन से विरोध का शमन होने के कारण शक्ति है।
अथ द्युतिः
द्युतिर्नाम समुद्दिष्टा तर्जनोद्वेजने बुधैः ।
( 7 ) द्युति- तर्जन (अर्थात् डाँटना) और उद्वेजन (भययुक्त बनाकर उद्वेलित कर