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रसार्णवसुधाकरः
जैसे (वहीं बालरामायण में ९/२६ पद्य से बाद में)
"चारण- (देखकर) क्या क्रोध से भरे राम और रावण ने परस्पर बाण वर्षा का द्वैतयुद्ध प्रारम्भ कर दिया?" यहाँ से लेकर “चारण- यह रावण के शिरोमण्डल की छेदविद्या का प्रणव (प्रारम्भ) है" (६/३९ पद्य से बाद) तक पराक्रम वाले राम और रावण के दिव्यास्त्र प्रयोगरूप परस्पर पराक्रम का कथन होने से विरोधन है।
अथ प्ररोचना
सिद्धवद्धाविनोऽर्थस्य सूचना स्यात्प्ररोचना ।
(11) प्ररोचना- किसी सिद्धपुरुष के समान भविष्य में होने वाले कार्य की सूचना देना प्ररोचना कहलाता है।।६६पू.॥
यथा तत्रैव (बालरामायणे) अष्टमाङ्के (८/१३ पद्यादनन्तरम्) __ "कर:- (जनान्तिकम) सखे कडालक! देवः कुम्भकर्ण प्रबोषयति। न पुनरात्मानम्। कि प्रयत्लेन बोषितोऽप्यसौ रामेण पुनः शायितव्य एव। कालक:मण्णे विभीसणं वज्जिअ सव्वस्सवि एसा गई (मन्ये विभीषणं वीयत्वा सर्वस्याप्येषा गतिः )।
करकः- तथैव" इत्यत्र भविष्यतः कुम्भकर्णादिराक्षसनाशस्य कहालककरहकाभ्यां सिद्धवद् निश्चित्य सूचनात् प्ररोचना ।
जैसे वहीं (बालरामायण के अष्टम अङ्क ८/१३ पद्य से बाद में)
"करक- (जनान्तिक) हे मित्र कङ्कालक! स्वामी (रावण) कुम्भकर्ण को जगा रहे हैं क्योंकि प्रयत्न से जगाये जाने पर ये राम के द्वारा दीर्घ निद्रा को प्राप्त करेंगे।ककालकमैं समझता हूँ कि विभीषण को छोड़ कर सभी की यही गति होगी।"
करक- “ठीक है।" यहाँ होने वाले कुम्भकर्ण इत्यादि राक्षसों के नाश का कङ्कालक और करङ्कक के द्वारा सिद्धपुरुष की भाँति निश्चय करके सूचना होने से प्ररोचना है।
अथ विचलनम्
आत्मश्लाघा विचलनम् (12) विचलन- आत्म-प्रशंसा को विचलन कहते हैं। यथा तत्रैव (बालरामायणे)
करङ्ककः- (प्रकाशम्) किमाह कुम्भकर्णः । आस्तां धनुः किमसिना परतो भुसुण्डीचक्ररलं भवतु पट्टिशमुद्गराद्यैः । धावत्प्लवङ्गपृतनाकबलक्रमेण यास्याम्यहं सुहिततां च रिपुक्षयं च ।।(8.37)545 ।।