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तृतीयो विलासः
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अथ व्यवसाय:
व्यवसायः स्वसामर्थ्यप्रख्यापनमितीर्यते ।
(9) व्यवसाय- अपनी सामर्थ्य (शक्ति) का प्रदर्शन करना व्यवसाय कहलाता है।६६पू.॥
यथा तत्रैव (बालरामायणे)
भो लकेश्वर दीयतां जनकजा रामः स्वयं याचते कोऽयं ते मतिविभ्रमः स्मर नयं नाद्यापि किञ्चिद् गतम् । नैवं चेत् खरदूषणत्रिशिरसां कण्ठासृजा पङ्किलः
पत्री नैष सहिष्यते मम धनुाबन्धबन्धूकृतः ।।(9/19)544।।
इत्युपक्रम्य, "किमाह रावणः। रे रे मानुषीपुत्र! अयमसी अक्षत्रियो रावणः। क्षत्रियो रामः । तदत्र दृश्यताम्। कतरो विनेयः। कतरो विनेता इति- किमाह रामभद्रः। है हो अमानुषीपुत्र! क्षत्रियो रामः। अयमसौ अक्षत्रियो रावणः। तदत्र दृश्यताम्, कतरो विनेयः। कतरो विनेता।" (९/२६ पलादनन्तरम्) इत्यन्तेन रामरावणाभ्यां स्वसामर्थ्यप्रख्यापनाव्यवसायः।
जैसे वहीं (बालरामायण में)
हे रावण! सीता को दे दीजिए। राम स्वयं याचना कर रहे हैं। आप का यह कौन सा मतिविभ्रम है। नीति को स्मरण कीजिए। अब भी कुछ नहीं गया (बिगड़ा) है। यदि ऐसा नहीं करते तो खर-दूषण और त्रिशिरा के रक्त से सिक्त मेरा यह बाण जो धनुष की प्रत्यञ्चा के बन्धन से मित्र बना हुआ है, सहन नहीं करेगा।(9.19)544।।
___ यहाँ से लेकर "रावण ने क्या कहा! हे मनुष्य! यह रावण अक्षत्रिय है और तुम राम क्षत्रिय हो। तो देखो कौन नम्र हो रहा है और कौन नम्रकर्ता है। रामभद्र ने क्या कहा? हे अमनुष्य! यह क्षत्रिय राम है तुम अक्षत्रिय रावण हो तो देखे कौन विनेता और कौन विनत होता है।"(९/२६ पद्य से बाद) यहाँ तक राम और रावण का परस्पर अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करने से व्यवसाय है।
अथ विरोधनम्
विरोधनं निरोधोक्तिः संरब्यानां परस्परम् ।।६५।। (10) विरोधन - परस्पर पराक्रम के कथन को विरोधन कहते हैं।।६५ उ.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे ९/२६ पद्यादनन्तरम)
"चारण:- (विलोक्य) कथममर्षणदर्पिताभ्यां रामरावणाभ्यां परस्परं प्रत्युपक्रान्तमिवदितम् ।" इत्युपक्रम्य, "चारण: नन्वयमोंकारो रावणशिरोमण्डलच्छेदनविधायाः" (९/३९ पचादनन्तरम्) इत्यन्तेन संरायो रामरावणयोः दिव्यासप्रयोगरूपपरस्परसंरोधकथनाद् विरोधनम्।