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तृतीयो विलासः
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प्रतिमुख सन्धि के अङ्ग- प्रतिमुख सन्धि के प्रयोज्य तेरह अङ्ग होते हैं- (1) विलास, (2) परिसर्प, (3) विधुत, (4) शम, (5) नर्म, (6) नर्मद्युति, (7) प्रगमन, (8) विरोध, (9) पर्युपासन, (10) पुष्प, (11) वज्र, (12) उपन्यास, (13) वर्ण संहरण।।३९उ.-४१पू.।।
(तत्र विलासः)
विलासं सङ्गमार्थस्तु व्यापारः परिकीर्तितः ।।४१।।
(1) विलास- (नायक-नायिका के) समागम के लिए किया गया कार्य (व्यापार) विलास कहलाता है।।४१उ.।।
यथा तत्रैव विलक्षलकेश्वरनाम्नि तृतीयेऽङ्के (३.२१पद्यात्पूर्वम्)
'रामः- अये इयमसौ सा सीता, यस्याः स्वयं वसुमती माता यागभूर्जन्ममन्दिरम् इन्दुशेखर-कार्मुकारोपणं च पणः। (सस्पृहं निर्वण्य) इत्यारभ्य
प्रतीहारः -
एतेनोच्चैर्विहसितमसौ काकली गर्भकण्ठो लौल्याच्चक्षुः प्रहितममुना साङ्गभङ्गः स्थितोऽयम् । हारस्याग्रं कलयति करेणैष हर्षाच्च किञ्चित्
स्त्रैणः पुसां नवपरिगमः काममुन्मादहेतुः ।।(3.26)5 13 ।। इत्यन्तेन रामादीनां सीतालम्बनाभिलाषकथनाद् विलासः।
जैसे- वहीं (बालरामरयण के) विलक्षलङ्केश्वर नामक तृतीय अङ्क में (३.२१ पद्य से पूर्व)
"राम- अरे! यही वह सीता है, जिसकी स्वयं भगवती पृथ्वी माता है यज्ञभूमि जन्म-मन्दिर है, और शिव के धनुष का आरोपण जामाता का गुण है। (स्पृहा से देखकर)" यहाँ से लेकर
प्रतीहार
यह जोर से हँस रहा है, यह (दूसरा) कण्ठ से काकली गा रहा है, इसने सतृष्ण नेत्र चलाया, यह तिरछा खड़ा है, यह हाथ से हार का अग्र भाग हर्ष से कुछ उठा रहा है।। (3.26)513।।
___ यहाँ तक राम इत्यादि लोगों का सीता के आलम्बन आश्रय का कथन होने से विलास है।
अथ परिसर्पः -
पूर्वोद्दिष्टस्य बीजस्य त्वङ्कच्छेदादिना तथा । नष्टस्यानुस्मृतिः शश्वत्परिसर्प इति स्मृतः ।।४२।।