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रसार्णवसुधाकरः
यहाँ क्रोधान्ध परशुराम का विश्वामित्र द्वारा अनुनय किया गया है, अत: पर्युपासन है अथ पुष्पम्
यद्विशेषाभिधानार्थ पुष्पं तदिति संज्ञितम् ।।४७।।
(10) पुष्प- (बीजोद्घाटन के लिए प्रयुक्त) विशेषता से युक्त कथन पुष्प नार से जाना जाता है।।४७३०॥ ...
यथा तत्रैव (बालरामायणे) तृतीयेऽके (३.११)(प्रवश्यि) कोहल:
कर्पूर इव दग्धोऽपि शक्तिमान् यो जने जने ।
नमः शृङ्गारबीजाय तस्मै कुसुमधन्वने ।।522।। इत्युपक्रम्य (3/16)
"प्रकटितरामाम्भोजः कौशिकवान सपदि लक्ष्मणानन्दी।
सुरचापनमनहेतोरयमवतीर्णः शरत्समयः ।।523।। इत्यन्तेन रामचन्द्रलक्षणार्थविशेषाभिधानात् पुष्पम्। जैसे वहीं (बालरामायण के तृतीय अङ्क ३/११ में)"(प्रवेश करके) कोहल
जो शङ्कर का बीज कामदेव कपूर के समान जल कर भी प्रत्येक व्यक्ति में शक्तिमान् है, उस शृङ्गार के बीज रूप में विद्यमान पुष्पधन्वा (कामदेव) को नमस्कार है"।।522 ।। यहाँ से लेकर
"देव शिव के धनुष के मर्दन हेतु यह शरत्समय उत्पन्न हो गया। इसमें राम रूप कमल प्रकट हो गया है। जिसमें विश्वामित्र रूपी आमोद है तथा लक्ष्मण रूपी हंस को आनन्द देने वाला है। (3.16)।।523।।
यहाँ तक रामचन्द्र विषयक विशेष कथन होने से पुष्प है। अथ वज्रम्
वजं तदिति विज्ञेयं साक्षान्निष्ठुरभाषणम् । (11) वज्र- प्रत्यक्षरूप से प्रयुक्त निष्ठुर वचन वज्र कहलाता है।।४८पू.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे) चतुर्थेऽके (४/६१)जामदग्न्यः- किञ्च रे निदर्शितलाघव! राघव! तदाकर्णय यत्ते करोमि
त्रुटितनिबिडनाडीचक्रवालप्रणालीप्रसृतरुधिरधाराचर्चितोच्चण्डरुण्डम् । मडमडितमृडानीकान्तचापस्य भङ्क्तः परशुरमरवन्धः खण्डयत्यद्य मुण्डम् ।। 524।।