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तृतीयो विलासः
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इत्युपक्रम्य “य: प्रेतनाथस्यातिधिथ्यमनुभवितुकाम" इत्यन्तेन वज्रनिष्ठभाषणाद् वज्रम्। जैसे वहीं (बालरामायण के) चतुर्थ अङ्क (४/६१ में)
"जानदग्न्य- अरे अपने वर्णनगर्व का करने वाले और मेरी लघुता को प्रदर्शित करने वाले राघव! तो तुम्हारे लिए जो मैं कर रहा हूँ उसे सुनो
देवताओं द्वारा वन्दित फरसा आज मरमराते हुए शिवधनुष को तोड़ने वाले (राम) के टूटे हुए सघन शिराओं के समूह से नालियों के समान बहती हुई रुधिर धाराओं से व्याप्त, भयङ्कर कबन्ध वाले शिर को काट डाले"(4.61)|1524।।
यहाँ से लेकर “ जो यमराज के आतिथ्य का अनुभव करना चाहता है" यहाँ तक वज्र के समान कठोर कथन होने से वज्र है। -
अथोपन्यासः
युक्तिभिः सहितो योऽर्थ उपन्यास स इष्यते ।।४८।। ( 12 ) उपन्यास- युक्तियों (तर्को) से युक्त कथन उपन्यास कहलाता है।।४८उ.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे)
'मातलि:- अयं हि पितृभक्त्यतिशयः परशुरामस्य यदुत रेणुकाशिरच्छेदः। (४.२९ पधादनन्तरम्)।
इत्युपक्रम्यदशरथः
यच्छिन्नं जननीशिरः पितृवराद्भूयोऽपि यत्संहितं तच्छिष्यस्य पिनाकिनो महदभूच्चित्रं चरित्रं किल । तेनैतेन कथाद्भुतेन तु वयं वाचापि लज्जामहे
यद्वा ते गुरवोऽविचिन्त्यचरितास्तेभ्योऽयमस्त्वञ्जलिः।।(4.33)525।।
इत्यन्तेन उपपत्तिभिः पितुनिर्देशकरणादपि मातृवधकरणस्यैव प्रतिपादनाद्वा गुरूणामविचिन्त्यचरितत्वोपन्यासेन सर्वोपपन्नत्वप्रतिपादनत्वाद् वा उपन्यासः।
जैसे वहीं (बालरामायण के चतुर्थ अङ्क में)
"मातलि- यह परशुराम की पितृभक्ति का अतिशय है, जो माता का सिर काट डाला' (४९पद्य से बाद) यहाँ से लेकर
दशरथ
जो माता का शिरच्छेदन हुआ और पिता के वर से जो पुनः जुड़ गया, यह शङ्करशिष्य परशुराम का विचित्र चरित्र है। इस अद्भुत कथा को वाणी से कहने में भी हम लज्जा का अनुभव कर रहे हैं अथवा यह- महनीय लोग अचिन्त्य चरित्र वाले हैं. इन्हें प्रणाम