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[ ३२८ ]
रसार्णवसुधाकरः
सूत्रधारचलद्दारुगात्रेयं
यन्त्रजानकी ।
वक्त्रस्थशारिकालापा लङ्केन्द्रं वञ्चयिष्यति । ( 5.6 ) ।।528।।
इत्युपक्रम्य
"रावण:- (पुनर्निरूप्य) सारिकाधिष्ठितवत्रं सीताप्रकृतियन्त्रम् । अहोः मतिमान् मायामयः। छलितोऽस्मि जनकराजपुत्र्याः प्रतिकृर्तिसमर्पणेन । ” (५.२० पद्यानन्तरम् ) इत्यन्तेन माल्यवत्कपटवाक्यसंविधानाद् अभूताहरणम् ।
"माल्यवान् - (हँसकर)। बूढ़ी बुद्धि वाला पहले देखता है तत्पश्चात् कार्य का दुर्योग होता है। जैसा कि मैंने शङ्कर के धनुष के अधिपेक्ष से ही बुद्धि की आँख से देखा है कि रावण सीता का हरण करेगा।
मायामय— तब तब! माल्यवान् - मैंने मन्दोदरी के पिता मायाचार्य मय के प्रथम शिष्य विशारद नामक यन्त्रकार को आदर से सीता की प्रतिकृति करने के लिए नियुक्त किया है और उसने उसे बना दिया है तथा रावण को वञ्चित करने के लिए उसने कहा है किलकड़ी के शरीर वाली यह यन्त्र- निर्मित जानकी सूत्रधार के द्वारा चलेगी और मुख में स्थित सारिका द्वारा बोलेगी तथा इस प्रकार रावण की वञ्चना करेगी" ( 5.6) 11528 ।।
यहाँ से लेकर
" रावण- (पुनः देखकर) अरे ! यह तो मुख में सारिका बैठाया हुआ सीता की प्रतिकृति का यन्त्र है। अरे! मायामय बुद्धिमान् है, जनकराज पुत्री के प्रतिकृति निर्माण से मैं छला गया हूँ।” (५/२० पद्य के बाद) यहाँ तक माल्यवान् के कपट वाक्य का संविधान होने अभूताहरण है।
से
अथ मार्ग:
वास्तविकार्थकथा मार्गः
( 2 ) मार्ग- वास्तविक अर्थ का कथन मार्ग कहलाता है।
यथा तत्रैव (बालरामायणे) निर्दोषदशरथनामनि षष्ठा
"मायामयः- आर्य! किमपि । द्विषतामप्यावर्जकमुदात्तजनचरितम्। पश्य
क्रूरक्रमं किमपि राक्षसजातिरेका
तत्रापि कार्यपरतेति मयि प्रकर्षः ।
रामेण तु प्रवसता पितुराज्ञयैव
बाष्पाम्भसामहमपीह कृतो रसज्ञः " ।। (6/9 ) ।। 529 ।।
इत्युपक्रम्य
"मायामयः- ततश्च वामदेवप्रभृतिभिर्मन्त्रिभिर्यथावृत्तममिधाय सपादोपग्रहं