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तृतीयो विलासः
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स्तत् त्वां याचे विरम कलहादार्यकारभस्व ।।(4/69) ।।511 ।। जामदग्न्यः- (विहस्य) मातुर्मातुल, न किञ्चिदन्तरं भवतो भवानीवल्लभस्य च।'
इत्युत्क्रम्य "रामः- (विहस्य) जामदग्न्यः एकः पुनरयं शस्त्रग्रहणाधिकारो यद् गुरुष्वपि तिरस्कारः।" इत्यन्तेन भार्गवराघवयोः पूज्यविषयकोषापहन्वार्थ हास्यकथनान्नर्मद्युतिः
जैसे- वहीं (बालरामायण के) चतुर्थ अङ्क में"विश्वामित्र- (परशुराम के प्रति)
हे परशुराम! राम मेरे शिष्य और आप मेरी बहन के पौत्र हैं अतः आप दोनों मेरे बाएँ और दाहिने हाथ हैं। कार्य से कौन विशिष्ट कहा जाए? आप ने दिव्यास्त्रों को शङ्कर से और इसने मुझसे प्राप्त किया है। अतः आप से प्रार्थना करता हूँ कि कलह से रुकिए और सत्पुरुषों का आचरण कीजिए। (4/69)।।516।।
__परशुराम- (हँसकर) हे माता के मामा! आप और शङ्कर में कोई अन्तर नहीं है तथा आपके शिष्य और शङ्कर शिष्य (मुझ) में कोई अन्तर नहीं है" यहाँ से लेकर
'राम- (मुस्कराकर) यह केवल परशुराम का भी तिरस्कार करता है' तक परशुराम और राघव का पूज्य- विषयक क्रोध को छिपाने के लिए परिहास- पूर्ण कथन के कारण नर्मद्युति है।
अथ प्रगमनम्
तत् तु प्रगमनं यत् स्यादुत्तरोत्तरभाषणम् ।
(7) प्रगमन- (बीज के अनुकूल) उत्तरोत्तर (उत्तर-प्रत्युत्तर-युक्त) कथन प्रगमन कहलाता है।।४६पू.॥
यथा तत्रैव (बालरामायणे) (४.७१)रामः - किं पुनरिमाः सर्वंकषा रोषवाचः।
सर्वत्यागी परिणतवयाः सप्तमः पद्मनोनेः शिष्यः शम्भोरिति च यदि वः प्रश्रयी रामभद्रः । तत् किं भीमा भृकुटिघटना तामिमां नास्मि सोढा
वोढा वीरव्रतविधिमयं यद्गुरुव्रीडमेति ।।517 ।। जैसे- वहीं (बालरामायण में)जामदग्न्यः - ततः किम् । रामः- (सखेदम्)
यस्याचार्यकमिन्दुमौलिरकरोत् सब्रह्मचारी चिरं जातो यत्र गुहश्चकार च भुवं यद्गीतवीरव्रताम् ।