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तृतीयो विलासः
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२७ पद्य से बाद) तक विश्वामित्र के अनुभाव का कथन होने तथा राक्षस के भय का कथन होने से बीज की उत्पत्ति के कारण परिन्यास है।
अथ विलोभनम्
नायकादिगुणानां यद् वर्णनं तद् विलोभनम् । (४) विलोभन- नायक इत्यादि के गुणों का वर्णन विलोभन कहलाता है।।३४पू.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे)रावणः- 'यस्यारोपणकर्मणापि बहवो वीरव्रतं त्याजिता'(१/३०) इत्युपक्रम्य 'रावणः (सप्रत्याशम् स्वगतम्)
निर्माल्यं नयनश्रियः कुवलयं वक्त्रस्य दासः शशी कान्तिः प्रावरणं तनोर्मधुमुचो यस्याश्च वाचः किल । विंशत्या रचिताञ्जलिः करपुटैस्त्वां याचते रावणः स्तां द्रष्टुं जनकात्मजां हृदय हे नेत्राणि मित्रीकुरु ।।(1.4)507 ।।
इत्यन्तेन तद्गुणवर्णनाद् विलोभनम् । जैसे- वहीं (बालरामायण के प्रथम अङ्क में)
"रावण- जिसके आरोपण कार्य से ही बहुतों ने वीरव्रत का परित्याग कर दिया (१/३०) यहाँ से लेकर
"रावण- (आशा से मन में) नीलकमल जिसके नेत्रों की शोभा का निर्माल्य (निवेदित पुष्प है,) चन्द्रमा जिसके मुखकमल का दास है, कान्ति शरीर का आच्छादक है और जिसकी वाणी मधुवर्षा करने वाली है उस सीता को देखने के लिए बीसों हथेलियों से हाथ जोड़े रावण तुम से याचना कर रहा है। हे हृदय! नेत्रों को मित्र बनाओं।।(1.40)507 ।।
यहाँ तक उस (सीता) का वर्णन होने से विलोभन है। अथ युक्तिः
सम्यक्प्रयोजनानां हि निर्णयो युक्तिरिष्यते ।।३४।। तथा तत्रैव (बालरामायणे) परशुरामरावणीयनामनि द्वितीयाङ्के
(ततः प्रविशति भिङ्गिरिटिः। स परिक्रामन्त्रात्मानं निर्वर्ण्य) अये विरूपतापि क्वचिन्महतेऽभ्युदयाय' इत्युपक्रम्य 'भिजिरिरिटिः नारद! यथा समर्थयसे।
तथा हि
एकः कैलासमद्रिं करगतमकरोच्चिच्छिदे क्रौञ्चमन्यो लङ्कामेकः कुबेरादाहृतःवसतये कङ्कणानब्धितोऽन्यः । एकः शक्रस्य जेता समिति भगवतः कर्तिकेयस्य चान्य