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रसार्णवसुधाकरः
स्तत् कामं कर्मसाम्यात् किमपरमनयोर्मध्यागा वीरलक्ष्मीः ।। (2.15)।।508।। इत्यन्तेन राघवप्रतिनायकयोर्गिवरावणयोः कर्मसाम्यकथनाद् युक्तिः। (५) युक्ति- सम्यक् प्रकार से प्रयोजनों का निर्णय करना युक्ति कहलाता है।।३४उ.।। जैसे- वहीं (बालरामायण के द्वितीय अंक में)
"इसके बाद भृङ्गिरिटि प्रवेश करता है) भिङ्गिरिटि- ( परिक्रमा से अपने को देख कर) अहा विकृतरूपता भी कहीं-कहीं महान् हितकर होती है" से लेकर "भृङ्गिरिटि- हे नारद! जैसा आप समझते हैं। (वह ठीक है) क्योंकि
___ एक (रावण) ने कैलाश पर्वत को उठा लिया तो दूसरे (राम) ने क्रौञ्च पर्वत का भेदन कर डाला। एक ने रहने के लिए कुबेर से लङ्का छीन लिया तो दूसरे ने समुद्र से कङ्गन लिया। एक युद्ध में इन्द्र को जीतने वाला है तो दूसरे ने भगवान् कार्तिकेय को जीत लिया। अतः पौरुष की समानता से दोनों तुल्य हैं। वीरलक्ष्मी दोनों के बीच में हैं।।508।।
यहाँ राम के प्रतिनायकों परशुराम और रावण के कार्य की समानता का कथन होने से युक्ति है।
अथ प्राप्तिः -
प्राज्ञैः सुखस्य सम्प्राप्तिः प्राप्तिरित्यभिधीयते । यथा तत्रैव (बालरामायण २/१६)नारदः - (सयुद्धावलोकनहर्षं हस्तमुद्यम्य)
चित्रं नेत्ररसायनं त्रिदशतासिद्धेर्महामङ्गलं मोक्षद्वारमपावृतं मम मनः प्रह्लादनाभेषजम् । साकं नाकपुरन्ध्रिभिनवपदप्राप्त्युत्सुकाभिः सुराः ।
सर्वे पश्यत रामरावणरणं वक्त्येष वो नारदः ।।509।। इत्यत्र नारदस्य युद्धविलोकनहर्षप्राप्तेः प्राप्तिः । (६) प्राप्ति- सुख के पूर्णत: प्राप्त होने को प्राज्ञों ने प्राप्ति कहा है।३५पू.॥ जैसे वहीं (बालरामायण, २।१६ में) -
नारद- (युद्ध देखने से हर्ष से हाथ उठाकर), यह विचित्र नेत्ररसायन है। देवत्व सिद्धि का महामङ्गल है। खुला हुआ मोक्ष द्वार है और मेरे मन की प्रसन्नता का औषध है। नवीन पतियों की प्राप्ति की उत्सुकता वाली स्वर्ग रमणियों के साथ सभी देवता राम-रावण के युद्ध को देखेंयह नारद घोषणा कर रहे हैं।।509।।
यहाँ नारद का युद्ध देखने से उत्पन्न हर्ष की प्राप्ति के कारण प्राप्ति है।