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द्वितीयो विलासः
तेन रसस्याभासत्वं यथा (हनुमन्नाटके १० -१२)स रामो नः स्थाता न युधि पुरतो लक्ष्मणसखो रम्भोरु ! त्रिदशवदनग्लानिरधुना ।
भवित्री
प्रथ्यास्यत्येवोच्चैर्विपदमचिरात्
वानरचमू
षष्ठाक्षरपरविलोपात् पठ पुनः ।। 492 ।।
र्लघिष्ठेदं
अत्र सीतायां रावणविषयरागात्यन्ताभावादाभासत्वम् ।
[ २८९ ]
उस रागाभाव से रसाभास जैसे (हनुमन्नाटक १०-१२ में) -
(रावण सीता से कह रहा है) हे रम्भोरु सीते! अभी-अभी देवताओं का मुँह मुरझाने
वाला है, क्योंकि लक्ष्मण सहित राम मेरे सम्मुख युद्ध में ठहर नहीं सकेंगे और यह वानरी सेना बड़ी विपत्ति में फँस जायेगी।
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( यह सुन कर सीता ने कहा )- अरे नीच ! इस श्लोक के प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय चरणों के क्रमशः सातवें 'त्रि' 'न' और 'वि' अक्षरों को हटा कर फिर पढ़ो। इन तीनों अक्षरों को हटाने से अर्थ होता है— रावण का मुँह मुरझा जायेगा क्योंकि लक्ष्मण सहित राम युद्ध में डटे रहेंगे और वानर सेना बड़ा महत्वपूर्ण पद प्राप्त करेगी। 149211
यहाँ सीता में रावण विषयक राग का अत्यन्त अभाव होने से अभासता है। नन्वेकत्र रागाभावाद् रसस्याभासत्वं न युज्यते । प्रथममजातानुरागे वत्सराजे जातानुरागाया रत्नावल्या:
शंका- एक में रागाभाव होने से रस की आभासता उचित नहीं है क्योंकि पहले से अनुत्पन्न अनुराग वाले वत्सराज (उदयन) में उत्पन्न राग वाली रत्नावली का - दुल्लहजणाणुराओ लज्जा गुरुई परव्वसो अप्पा ।
पिअसहि! विसमं पेम्मं मरणं सरणं णु वरमेक्वम् ।।493 ।। (दुर्लभजनानुरागो लज्जा गुर्वी परवश आत्मा ।
प्रियसखि विषमं प्रेम मरणं शरणं नु वरमेकम् । । )
दुर्लभ व्यक्ति के प्रति अनुराग (है), भारी लज्जा (है) आत्मा पराधीन है। हे प्रिय सखी, इस प्रकार प्रेम-विषय (शंकापत्र) है। अब मेरे लिए मृत्यु ही केवल सर्वोत्तम सहारा है ।।493 ।। इत्यत्र पूर्वानुरागस्याभासप्रसङ्ग इति चेद्, उच्यते- अभावो हि त्रिविधः प्रागभावोऽत्यन्ताभावः प्रध्वंसाभावश्चेति । तत्र प्रागभावे दर्शनादिकारणेषु रागोत्पत्तिसम्भावनया नाभासत्वम् । इतरयो तु कारणसद्भावेऽपि रागानुत्पत्तेराभासत्वमेव । अन्ये तु स्त्रिया एव रागाभावे रसास्याभासत्वं प्रतिजानते। न तदुपपद्यते । पुरुषेऽपि रागाभावे रसास्यानास्वादनीयत्वात् । यहाँ पूर्वानुराग के आभास का प्रसङ्ग होने के कारण । समाधान- अभाव तीन प्रकार